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राजनैतिक वन्धुत्व

कमेटीकी रिपोर्ट तथा भारत सरकारके खरीतोंको पढ़कर यही धारणा होती है कि इसके द्वारा अधिकारीवर्गकी उच्छृखलता नथा अराजकताको छिपाने की घोर चेष्टा की गई है। जिस उदासीनताके साथ जेनरल डायरके कल्ले आम तथा पेटके बल रेंगनेकी घृणित आज्ञाकी निन्दा की गई है उसे पढ़कर निराशा और असन्तोषकी काली घटा छा जाती है। कमेटीकी इस, रिपोर्ट तथा भारतसरकारके खरीतोंकी निन्दा सभी देशी पत्रोंने की है चाहे वे नरम दलके रहे हो या गरम दलके। इसलिये उसकी यहां सविस्तर समीक्षा करनेकी आवश्यकता नहीं। प्रश्न उठता है कि इस रहस्यका उद्घाटन किस तरह किया जाय। इसका परदा कैसे खोला जाय। यदि भारतको साम्राज्यका बराबरका साथी होना है, यदि उसे अपने आत्म गौरवका जरा भी ख्याल है तो इस तरहकी बुराई और हीनताको वह बर्दाश्त नहीं कर सकता। इस रिपोर्ट के प्रकाशित होनेसे जा स्थिति उत्पन्न हा गई है उस पर तथा अन्य अनेक विषयोंपर विचार करनेके लिये अखिल भारतवर्षीय कांग्रेस कमेटीने कांग्रेसका विशेष अधिवेशन करनेकी मन्त्रणा दी है। मेरे मतसे वह समय आगया है कि जब हमें केवल अनुनय विनय और पालिमेंटमें प्रार्थनापत्र भेज कर ही सन्तुष्ट न हो जाना चाहिये। प्रार्थनापत्र तभी कारगर होते हैं, उन पर तभी विचार किया जाता है जब प्रार्थी राष्ट्रमें इस बातकी शक्ति होती है कि वह अपनी इच्छाकी पूर्ति