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पंजावकी दुर्घटना


बल प्रयोग द्वारा भी करा सकता है। पर क्या हमलोगोंमें इस तरहकी कोई भी शक्ति है ? जब हमलोगोका पका विश्वास है कि हमलागोंके साथ घार अन्याय और क्रूरतम अत्याचार किया गया है और जब सबसे बड़े अधिकारोके पास प्रार्थना पत्र भेजनेपर भी हमारे दुःखोंपर विचार न हुआ-न्याय पाना तो दूर रहा-तो इसके प्रतिकारके लिये हमारे हाथमें किसी शक्तिका होना आवश्यक है। यह ठीक है कि अधिकांश अवस्थामें साधारण कार्रवाई के असफल हो जानेपर उसे चुप लगाकर उस दुराचार को बर्दाश्त करते रहना चाहिये जब तक कि उनके द्वारा उसके किसी प्रधान अंगपर कुठाराघात न होता हो। पर प्रत्येक व्यक्ति और राष्ट्रके निर्दिष्ट अधिकार होते हैं और यदि उनपर कहींसे भीषण आघात होता है तो उसका विरोध करना उनका परम धर्म है। मैं सशस्त्र आन्दोलनमें विश्वास नहीं करता। जिम विमारीको दूर करनेके लिये इस उपचारका प्रयोग किया जाता है उसके परिणामसे इनका परिणाम कहीं भीषण हो जाता है। ये बदला, अधोरता तथा क्रोधके रूप हैं। हिंसाका अन्तिम परिणाम कभी भी सुखदायक नहीं हो सकता। जर्मनीके मुकाबिलेमे मित्रराष्ट्रोंने शस्त्रका प्रयोग किया था। उसका क्या परिणाम निकला ? क्या उनकी अवस्था ठीक जर्मनीको भांति नहीं हो गई है। जर्मनीका जैसा चित्र उनलोगोंने हमारे सामने खींचा था उनकी अवस्था भी उसीकी तरह हो रही है।