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क्षमादान कि विस्मृति


प्रयोग नहीं करना चाहा। यह सत्य है कि सम्पूर्ण भारतवर्ष ने इस मानवो सिद्धान्तको नहीं अपनाया है अर्थात् क्षमादानका शस्त्र नहीं ग्रहण कर लिया है, हत्या और फांसीकी चर्चा बहुधा सुननेमें आती है। पर भारत आज भी ब्रिटनके गवर्नरों और सेनापतियोंके मुकाबिलेमे अपने को नहीं समझता। आज भी वह उनसे उसी तरह डरता है। इसलिये सर माइकल ओडायर और जेनरल डायरकी क्षमाकी बातें निरर्थक हैं। पर भारत दिन प्रतिदिन क्षमा प्रदानकी शक्ति प्राप्त करता जा रहा है। यदि आज भा किसो भारतवासाके मुहसे पजाबके अत्याचारी अफसरोंके दण्ड प्रदानको बात निकलती है तो वह क्रोध और आवेशके कारण है । पर हम दृढ़तासे कह सकते है कि यदि आज भारत स्वतन्त्र होता अर्थात् यदि उसमे उन्हें दण्ड देनेकी शक्ति होती तो वह निश्चय ही उन्हें क्षमा कर देता और दण्ड देनेस मुंह मोड लेता। भारत केवलमात्र यहो चाहता है कि जालियांवाला बागकीसी घटनाओंकी पुनरावृत्ति- की सम्भावना एक दमसे दूर हो जाय। असहयोग भान्दोलन- ' का सारा कार्यक्रम केवल न्यायप्राप्तिके लिये रचा गया है कि प्रतिहिंसाके भावसे प्ररित होकर ।