क्योंकि जो कुछ वहां हुआ है उसको प्रगट करनेके लिये येही दो शब्द उपयुक्त हो सकते हैं। जुल्म और त्रासकी मात्राका दिग्दर्शन कराने के लिये संवाददाता के पत्र के कुछ वाक्योंको उद्धृत कर देना उचित होगा। उसने लिखा है: व्यक्तिगत फरियाद में वह फरियादी का बयान नहीं लिखता। अदालत के उठ जानेपर
कोर्ट का मुहर्रिर उन्हें लिख डालता है और दूसरे दिन उमसे
( मजिस्ट्रेटसे ) हस्ताक्षर करवा लेता है। रिपोर्ट चाहे फरियादोके पक्ष में लिखी गई हो या विपक्षमें, मजिस्ट्रेटे उसे पढ्ने की
परवा नहीं करता और विना पूरी तोर से विचार किये ही फरियाद
खारिज कर दिये जाते हैं। यह व्यक्तिगत फरियादों का किस्सा
है। अब पुलिस के किये चालानकी दास्तान सुनिये। अभियुक्त के
वकील को अभियुक्त से हवालात में मिलकर बातचीत करने की
इजाजत नही है। मुद्दई के गवाहों से वह जिगह भी नहीं कर
सकते। .....मुद्दई के गवाहों से सिर्फ बंधे सवाल किये जाते
हैं। .....इस प्रकार उस अभियोगका सारा दारमदार पुलिसके
गवाहपर रहता है। सफाईके गवाह पेश किये जाते हैं पर
अभियुक्त का वकील उनसे कुछ पूछताछ नहीं कर सकता। यदि
अपनी सफाईमें साहस करके अभियुक्त कुछ कहना चाहता है तो
यह डाटकर चुप कर दिया जाता है ।..... छाधनी का कोई भी
कर्मचारी कागजके किसी टुकड़ेपर छावनीके किसी भी रिमाया का नाम लिखकर उसे दूसरे दिन अदालत में हाजिर होने के
लिये कह सकता है। यही समनका तरीका है। यदि उपरोक्त
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पंजाबियोका कर्तव्य