पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/३९

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हो तो इसे स्वयं कौंसिल देखे। डफरिन कमेटो की सिफारिश वह भी थी कि दो पांचवां हिस्ता सदस्यों की संख्या निर्वाचित हो और सरकार के हाथ में यह अधिकार रहे कि यदि किसी बात पर अधिक मत भी विरुद्ध है तोभी वह उसे पास कर सके।

लार्ड डफरिन स्वयं इतनी उदारता दिखलाने के लिये तैयार नहीं थे। उन्होंने कहा था:-“कौंसिलों को कितना भी उदार क्यों न कर दीजिये पर अपने अपने प्रान्तों के लिये अन्तिम निर्णय का अधि- कार प्रान्तीय सभाओं के हाथ में हागा और अपनी नीति का निर्धारण वे स्वयं करेगी। इसी ख्याल से यह प्रबन्ध किया है कि कौंसिल के नामिनेटेडेटे (सरकार द्वारा चुने गये) सदस्यों की संख्या निर्वाचित संख्या से अधिक हो और यदि आवश्यकता आ पड़े तो शासकों को अधिकार है कि वह अपनी कौंसिल की बातको न मानकर अपने मनसे भी कोई काम कर सकता है।"

इस प्रकार बड़े लाटने अपनो कमेटी की कुछ उदार सिफारिशों के वजन को कम करने की चेष्टा की पर भारत मन्त्री ने बड़े लाटकी सभी सिफारिशों को उलट दिया और उनके एवज में बहुत ही साधारण बातें दे दी। उस समय लार्ड काम भारत मन्त्री थे और मिस्टर ग्लैडस्टन प्रधान मन्त्री थे। इन दो सजनों से एक भी कौंसिलों के लिये निर्वाचन के पक्ष में नहीं थे। लार्ड कासने स्पष्ट कह दिया कि इतने जबर्दस्त अधिकार प्रदान को व्यवमारी भूल है। मिस्टर ग्लैडस्टनने खयं कहा था-"इतने भीषण