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खिलाफतकी समस्या


सहयोग करनेमें हमारा पतन है तो वह सहयोग तुरन्त उठा ले। सरकारकी कार्रवाइयोंपर नाराजी जाहिर करनेका यह सबसे प्रधान उपाय है।

बहिष्कार ।

वहिष्कारसे सरकारकी आंखें कदाचित बुलें। वह स्थिति-की भीषणताका कुछ अनुमान कर सके। पर असहयोग करके फिर वहिष्कारका प्रश्न उठाना तो पहाड़ पर चढ़कर फिर गड्ढे में कूदनेके बराबर है। कल रातको बहुमतसे यह प्रस्ताव स्वीकृत हुओ कि यदि खिलाफतके प्रश्नका निपटारा सन्तोष. जनक न हो तो ब्रिटिश मालका बहिष्कार भी जारी कर दिया जाय। वहिष्कार एक प्रकारको प्रतिहंसा है और यदि इसके द्वारा हम लोग अपने साथ न्याय करना चाहें तो हमें इसके द्वारा संसारका मत अपने पक्षमें तैयार करना होगा। मैं यह बात दृढ़तासे कह सकता हूं कि ब्रिटिश मालके वहिष्कारसे तथा उसके स्थानपर अन्य विदेशकी बनी वस्तुओंके प्रयोगकी योजनासे कोई भी लाभ नहीं हो सकता बल्कि व्यवहारमें तो यह चल ही नहीं सकता। इसके अतिरिक्त जिस तरीकेका वहिष्कार किये जानकी योजना की गई है उससे हमारी कमजोरी झलकती है। सभी प्रश्नोंपर सफलता पूर्वक विचार करने के लिये हमें बलकी आवश्यकता है न कि कमजोरीकी । इसलिये हमें पूर्ण आशा है कि खिलाफत कमेटी हमारे कथनपर पूर्ण विचार करेगी और