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खिलाफतकी समस्या


मिलाना नहीं चाहिये । इसलिये हमें विजयोत्सवका वहिष्कार केवल उन कारणोंसे करना चाहिये जिनका सीधा सम्बन्ध सन्धिकी शर्तों से है और जिनसे हमारी राष्ट्रीयताके भावोंपर कड़ी चोट पहुंचती है। अन्य कारणोंको लाकर इसमें जुटाना उचित नहीं। खिलाफतका प्रश्न इन दोनों ही आवश्यकताओंको पूरा करता है इसलिये उसके आधारपर ही विजयोत्सवका वहिष्कार हो सकता है।

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खिलाफत ।

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( जनवरी २८, १९२० )

आज खिलाफतका प्रश्न, अर्थात् तुर्कोके साथ सन्धिकी शर्तोंका प्रश्न सबसे प्रधान प्रश्न हो रहा है। हम लोग बड़े लाट महोदयके अतिशय कृतज्ञ हैं कि असाधारण देर हो जाने पर तथा भिन्न-भिन्न प्रान्तके प्रधान अधिकारियोंसे मिलनेमें व्यस्त रहने पर भी उन्होंने संयुक्त डेपुटेशनसे बातचीत करना स्वीकार किया। जिस उदारतासे उन्होंने डेपुटेशनका स्वागत किया तथा जिस सौजन्यताके साथ बातचीत की उसके लिये भी हम लोग उनके आभारी हैं। सौजन्यता सदा--- और विशेषकर इस समय--- आदरणीय है पर इस भयानक स्थितिमें केवल सौजन्यतासे ही काम