पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४१६

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खिलाफतकी समस्या

उन्हें पर्याप्त उत्तर दे दिया जा चुका है। मिस्टर इमाम अली ने-जिनका ऐतिहासिक ज्ञान पराकाष्ठाको पहुचा हुआ है और जिसे शत्रु दलके लोग भी स्वीकार करते हैं लण्डन टाइम्सको एक पत्रमें लिखा था:-जिस समय तुकों साम्राज्य-की अवस्था अति उन्नति पर थी उस समय उसने पश्चिमी यरोपकी खासी मदद की थी। जिस समय हैप्सवर्गवालोंने फांस-के नाकों दम लगा रखा था तुर्कीने बराबर फांसकी सहायता की है। यह १६वी और १७वीं सदीकी बातें हैं। १८५७ में भारत के गदर के दिनां में तुर्कोने ब्रिटिश सेनाके जानेके लिये मिस्रक मार्ग खोल दिया था। मेसोरका राजा टिप्पू सुलतान अंग्रेजो के साथके अपने संग्रामको धार्मिक रूप देना चाहता था। तुर्कीके सुलतान ही थे जिन्होंने इसको चरितार्थ नही होने दिया। यदि अनुसन्धान करके देखा जाय तो विदित होगा कि किसो भी जातिका इतिहास इतना उज्वल नहीं है।

उसी पुरानी बातोंके उद्घाटनमे एक बात और निकल आई है जो तुर्कीको खण्डखण्ड करनेके लिये आगे रखी जा रही है। जो लोग तुर्कीको टुकड़े टुकड़े कर डालनेके पक्षमें हैं उनका कहना है कि भूतमें कुस्तुन्तूनियांका पश्न लेकर यरोपीय राष्ट्रोमे सदा अनबन रही है, मनोमालिन्य हुआ है। पर मनोमालिन्य- का क्या कारण था? किस लिये यह अनबन रही? क्या कुस्तुन्तूनियांकी रक्षाके लिये। मि० इमाम अलोने इसका उत्तर यों दिया है:-क्या यह मनमोटाव और कलह कुस्तुन्तुनियांपर