पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६१
तुर्कीका प्रश्न


अधिकार प्राप्त करनेके निमित्त नहीं था? प्रत्येक राष्ट्र यही चाहता था कि कुस्तुन्तूनियापर हमारा आधिपत्य हो। पर क्या जिस प्रकार इस प्रश्नका निपटारा किया जा रहा है उससे इस मनमोटाव और कलहके मिट जानेकी सम्भावना है? कदापि नहीं। यह काम केवल यूरोपसे हटकर पूर्वमें चला आयेगा। इसके अतिरिक्त क्या अन्तर्राष्ट्रीय आधिपत्य हर जगह सफल हुआ है? यहांपर मैं टैंगीरका उदाहरण दे देना चाहता हूं। मि० जी० ब्राउनने उसी प्रश्नको उनलोगोंके समक्ष रखा है जो तुकीको छिन्न भिन्न कर देना चाहते हैं। थोड़ी देरके लिये टेंगीरका प्रश्न दूर रख दीजिये और मित्रको उठाइये जहां अंग्रेज और फांसीसी दोनोंका युगपत् आधिपत्य हो रहा है। क्या इस प्रकारका युगपत अधिकार किसी भी प्रकार सफलता प्राप्त कर सका है कि कुस्तुन्तूनियाँमें भी इसे आजमानेकी चेष्टा करें?"

इन सबोंके अतिरिक्त एक और कारण उपस्थित करके तुर्को छिन्न भिन्न करनेके पक्षपाती अपने मतका समर्थन करते हैं। कई प्रधान व्यक्तियोंके हस्ताक्षरसे अभी लण्डनके टाइम्स पत्रमें एक लेखमें इसका प्रतिपादन विचित्र तरीकेसे किया गया है। आरम्भमें ये लोग खिलाफतके सम्वन्धमें मुसलमानोंके भावोंकी प्रशंसा तथा समर्थन करते हैं। वे लिखते हैं:-यह देखना नितान्त आवश्यक है कि हम लोग कोई ऐसा काम नहीं करते जिससे उनलोगोंके दिलपर चोट पहुचे