पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४३१

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मैंने खिलाफतका साथ क्यों दिया


नो मैं अपना यह धर्म समझता हूं कि उस पापाचरणमें मैं उसका साथ न दू', उससे सम्बन्ध तोड़ है। यही बात खिलाफतके विषयमें है। मित्रराष्ट्र तथा सरकारने अपना वचन भंगकर घोर पाप किया है। इस पापाचरणमें मैं उनका साथी नहीं हो सकता। मिस्टर लायड जार्जने जिस नीतिकी घोषणा की थी वही मुसलमानोंके पक्षमें है और उसका प्रतिपादन धर्म ग्रन्थों द्वारा भी हो जाता है। ऐसी अवस्था में उनकी मांग नितान्त उचित और युक्तिपूर्ण है। इसके अतिरिक्त यह धारणा भूलसे भरी है कि मैंने वर्तमान अराजकताको ओर भी ताकतवर बनाना चाहा है अथवा मुसलमानोंके हकको मानव समाजके हितके भी ऊपर रखने के लिये मैंने अपनी शक्तिका घरे मार्गमें संचालन किया है। मुसलमानोकी मांगमें इस बात पर कहीं भी जोर नहीं दिया गया है कि तुर्कोंकी उच्छृखलता उसी प्रकार रहने दी जाय बल्कि मुसलमानोंने पक्का वचन दिया है कि ने लोग तुर्की सम्राट्से इस बातकी प्रतिज्ञा करा लेंगे कि मुसलमानेतर जातियोंकी रक्षाका वह पूरा प्रबन्ध करेगा। मैं इस बात पर कोई पक्का मत नहीं प्रगट कर सकता कि आर्मेनिया और सीरियाकी अवस्थाको हम अराजकताका नाम कहांतक दे सकते है और इस अराजकताके लिये तुर्क कहां तक जिम्मेदार हैं। मेरी तो यही धारणा है कि वहां की अवस्था उतनी खराब नहीं है जितनी प्रगट की जाती है अर्थात् वास्तविक दशा बहुत ही बढ़ा कर लिखी जाती है, और वहांकी प्रचलित बुराइयों और कुप्रबन्धोंके लिये यूरोपीय शक्तियां