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खिलाफतकी समस्या


ब्रिटनके लोग सच्ची घटनाको न समझकर हठात् इस तरह के भाष ग्रहण कर लेते हैं जिससे अनेक आकांक्षाओं का नाश हो जाता है। वर्तमान युगमें समाचारपत्रों में बनावटीपन, पक्षपात, असंदिग्धता और बेईमानी का इतना जबर्दस्त दौरा हो रहा है कि जो लोग केवल सच्ची घटना समझने के लिये उदासीन. भाव से इन समाचारपत्रों को पढ़ना चाहते हैं वे भ्रममें पड़ जाते हैं और गलत तथा भ्रमपूर्ण भाव उनके दिलमें भर जाते हैं। इसके अतिरिक्त स्वार्थियों का एक अलग दल होता है जो गलत या सही तरीके से अपने हो हित साधनकी चेष्टा करते हैं और वे ईमानदार अंग्रेज भी जो केवल न्याय होते देखना चाहते हैं इन भ्रमात्मक तथा विरोधी मतों के चक्कर में इस प्रकार आ जाते हैं और तोड़ मरोड़े भावों का इतना प्रबल असर उन पर पड़ जाता है कि वह अन्यायकी ओर खिंच जाते हैं और उसीका समर्थन करते हैं ।

उपरोक्त पत्रके लेखकको ही ले लीजिये । उसने खयाली या मनगढन्त बातोंके आधारपर इस तरहकी दलीलें गढ़ डाली हैं जिनपर सहसा विश्वास हो सकता है। उसने इस बातको प्रमाणित करनेमें पूर्ण सफलता प्राप्त की है कि मुसलमानों की मांगें अन्यायपूर्ण और बेदम हैं । पर यहां भारतमें जहां ग्विला- फतके मसलेको तोड़ना मरोड़ना सहज नहीं है अंग्रेज लोग भी इस बातको मानते और स्वीकार करते हैं कि मुसलमानों की मांगें संगत तथा न्यायपूर्ण हैं । पर वे कहते हैं कि हम लाचार