पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४६०

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खिलाफत और गोवध

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( दिसम्बर १०, १९१९ )

इस सप्ताहके नवजीनमें महात्माजीने एक लम्बा चोड़ा पत्र प्रकाशित किया है। इस पत्रमें उनका दिल्लीका भाषण है जो उन्होंने खिलाफत कांफरेंसके सभापतिकी हैमियतसे दिया था और जिसका संक्षेपमात्र अपोसियेटेड स को प्राप्त हो सका था। उस संक्षिप्त विवरणमें दो बातें छूट गई थी जिनका यहां ज़िक्र कर देना उचित प्रतीत होता है। आपने कहा थाः---

"खिलाफत कांफरेंसके मन्त्री मिस्टर आसफ अलीने जो पर्चे बतला रहे है उनमें लिखा है कि गारक्षा और पंजाबके प्रश्नोंपर भी विचार किया जायगा। मेरा निवेदन है कि हिन्दू भाई इस अव- सरपर गोरक्षा के प्रश्नको न उठावें। आपत्कालमें विना किसी शर्तकी सहायता ही मैत्री का क्या लक्षण है। जिस सहयोगके लिये किसी मूल्यकी आवश्यकता है उसे मंत्री नहीं कह सकते वह तो बाजारू सौदा हो गया। शर्तनन्दी सहायता नकली सीनेएट मिट्टी की तरह है जो किसी वस्तु को जमा नहीं सकती और जल्दी ही उखड़ जाती है । यदि हिन्दुओं का विश्वास है कि मुसलमानोंकी मांगें न्यायोचित है तो उन्हें सहयोग करना चाहिये । यदि मुसलमान हिन्दुओंके दिलोंपर चोट पहुंचाना नहीं चाहते और उनके