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खिलाफतकी समस्या


करें। यद्यपि वे कमजोर हैं तथापि ईश्वरके भरोसे साहस ग्रहण करके इस संग्रामको चलावे', विजय अवश्य होगी। अगर भारतवर्ष---हिन्दू और मुसलमान---एक होकर काम करें और सन्धिकी इन शर्तों द्वारा मानव समाजके प्रति जो यह पाप हुआ है उससे अपनी सहानुभूति हटा लें, तो पूरी आशा है कि सन्धि. की शर्तों में अवश्य सुधार होगा। इससे यदि संसारको नहीं तो अपनेको, ब्रिटिश साम्राज्यको अनन्त शान्ति प्रदान हो सकेगी। यह निःसन्देह है कि यह युद्ध भीषण और अतिकालतक होगा पर इसमें जो कुछ त्याग करना पड़े वह सर्वथा करणीय है। यह समय हिन्दू और मुसलमान दोनोकी परीक्षाके लिये उपस्थित हुआ है। क्या इस्लाम धर्मका यह अपमान उनके लिये चिन्ता- का विषय नहीं है? यदि है तो क्या वे आत्मसंयमके लिये तैयार हैं ? क्या वे धर्मकी चाहसे अहिंसाके लिये तैयार है ? क्या वे लोग हरतरहकी क्षति बर्दाश्त करके असहयोगके लिये तैयार हैं ? क्या हिन्दूलोग इस संकटके समय अपने मुसलमान भाइयोंके साथ सच्ची सहानुभूति दिखलानेके लिये अन्तिम समयतकके लिये उनके साथ तैयार हैं ? खिलाफतके प्रश्नोंका . निपटारा सन्धिकी शर्ते जितना नहीं कर सकतीं उतना इन प्रश्नों के उत्तरसे हो जायेगा ।

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