पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४८८

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खिलाफतकी समस्या


तुर्कों के खिलाफ यूनानियों को सहायता के लिये तैयार हो जायगा ना इसमें भारत उसका किसी भी प्रकारसे साथ नहीं दे सकता, क्योंकि इसका अभिप्राय इस्लाम धर्मसे खुलमखुल्ला युद्ध करना होगा ।

इस समय इङ्गलेण्ड के लिये विचारणीय समय उपस्थित है। उसे भली भांति समझ लेना चाहिये कि अब वह जागृत मुसल- मानों को दास बनाकर नहीं रख सकता। यदि भारतको साम्राज्य में बराबर की हैसियत से रखना है तो उसे मत देनेका सबसे अधिक अधिकार मिलना चाहिये। स्वतन्त्र राष्ट्रका एक सदस्य यदि यह देखता है कि इतर सभी बुरे मार्गपर जा रहे हैं तो उनमे सम्बन्ध तोड़ देने की उसे उसी प्रकार पूर्ण स्वतन्त्रता है जिस प्रकार उसे उसमें तबतक रहनेकी पूर्ण स्वतन्त्रता है जबतक वह देखता है कि सभी सदस्य किसी निर्दिष्ट सिद्धान्तको पूरी तरह पालते जा रहे हैं। यदि भारतने मत देनेमें भूल को तो इङ्गलैण्ड उसका साथ छोड़ सकता है । इसलिये यदि भारतकी स्वतन्त्रता म्वीकार की जाती है तो समताका केन्द्र इङ्गलैण्डको न होकर भारतको होना चाहिये। साम्राज्यके अन्तर्गत स्वराज्यसे मेरा यही अभिप्राय है कि किसी भी तरहके निर्णयमें पशुबलकी चर्चा न होनी चाहिये । सदा बुद्धिबलकी सहायता ली जानी चाहिये, नलवार की चर्चा न होनी चाहिये ।

जो बात इङ्गलैण्ड के साथ है वही भारत के साथ है। उसे भी अपनी अवस्थापर विचार कर लेना चाहिये । आज हम इस