पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४९२

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खिलाफतकी समस्या


खिलाफत कांफरेंसों में तुर्की के उन अत्याचारों की किन शब्दों में निन्दा की और अर्मेनिया सदृश शान्त, परिश्रमी तथा उद्योगी जाति को मटियामेट कर देने के लिये तुर्कों ने जो प्रयत्न किया था उसमें अपनी अप्रसन्नता प्रगट की । विना किसी कारण के केवल देश प्रेम के लिये आर्मेनिया वालों का जो रक्त बहाया गया है उसके लिये ईश्वर के दरबार में तुर्को को जबाव देना पड़ेगा क्योंकि वह सबकी देखरेख किया करता है और उससे छिपाकर एक सूत का पतला धागा भी नहीं हिलाया जा सकता। तुर्कों का आजतक-का इतिहास केवल लूटपाट और हत्या का इतिहास है। तो क्या ऐसी जातिको सर्वथा अयोग्य ठहराकर उसके हाथ से अधिकार छीनकर उसे निकाल देना उचित नहीं है ? यदि राजनैतीक अधिकार का प्रयोग न्याय, स्वतन्त्रता तथा सद्भाव की स्थापना के लिये न होकर उसका प्रयोग दूसरोंके दबाने, सताने नथा नेस्तना बूद करने के तथा लूटपाट और हत्या के लिये होता हो तो क्या अन्य शक्तियों को यह उचित नहीं है कि वे उसकी जांच करें और यदि आवश्यक हो तो शान्ति रखने के लिये उससे अधिकार छीन लें । केवल राजनैतिक अधिकार के छीन लिये जाने से इस्लाम धर्म के धार्मिक स्वत्व पर किसी तरहका आघात नहीं होता। यदि उसकी धार्मिक सत्तामें कुछ जोर है तो उसके भरोसे वह जीये या मरे । धर्माधिकारके साथ राज्याधिकार हमेशा हानि- कारक हुआ है। इतिहाससे यही परिणाम निकलता है। रोमन कैथलिक चर्चा का इतिहास अभी बहुत पुराना नही हो गया है।