पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४२
खिलाफतकी समस्या


योग्यता नहीं रह गई तो वह खलीफा के पदके योग्य नहीं रह गया। केवल भाव में जो चाहे इस सिद्धान्तकी चरितार्थता पर बोल ले या विवाद कर ले पर व्यवहार में इसके प्रतिकूल कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि इङ्गलैण्ड ऐसे युद्ध में नहीं प्रवृत्त था जिसका उद्देश्य इस्लाम धर्म का नाश करना हो। एसी अवस्थामें इङ्गलैण्डको अपना संसर्ग उन लाखों आदमियोंके साथसे अलग करना होगा जो इसके प्रतिपादक हैं।

क्या वास्तवमें किसी धर्ममें केवल इसलिये बुराई आ सकती है कि उसका आधार अधिकार है ? यदि व्यवहारिक दृष्टिसे देखें तो क्या यह नहीं कह सकते कि ईसाई धर्मका विकास केवल अधिकारके बलपर हुआ है। और हिन्दू धर्मको ही ले लीजिये। क्या भारतके प्राचीन राजे महाराजे धर्मके रक्षक नहीं होते थे? क्या उन्होंने समय समय पर धर्मका उद्धार सङ्कटसे नहीं दिया था ?

जिन लोगोंका ( ईसाईयों का ) विचार मेरे उपरोक्त मित्रकी भांति है उनसे मैं यही कहूंगा कि आप लोग धर्मका अटल सिद्धान्त समझकर खिलाफतकी रक्षाके लिये प्रस्तुत हो जाइये। - असहयोगका यह युद्ध अधर्म के साथ धर्मका युद्ध है।

मेरी आत्मा इस विषयमें दृढ़ है। मेरा ध्येय न्याय है। मैं किसी धोखेबाजी या अन्यायका समर्थन करनेके लिये नहीं लड़ रहा हूँ। मेरे साधन भी संगत हैं। इस युद्धमें सचाई और अहिंसा यही मेरे दो अस्त्र हैं और आत्म पीड़न मेरी सचाईकी कसौटी है।

———•———