पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६४
खिलाफतकी समस्या

श्यकता पड़ेगी। इनकी रक्षाका भार किसपर रहेगा, इनके सार्थो की रक्षा और देखरेख कौन करेगा तथा इनके लिये राष्ट्र-सङ्घमें कौन जिम्मेदार होगा? तुर्कीको राष्ट्रसङ्घका सदस्यहोना चाहिये। सारे मुसलमान इस बातपर जोर दे रहे हैं। इन राष्ट्रोंकी जिम्मेदारीका भार तुर्कीपर सौंप दीजिये। इससे सब सन्तुष्ट हो जायंगे और आप भी आसानोसे दलदलसे निकल आवेगे।" पर इसपर इतराज उठता है कि ऐसा करनेसे नो हम लोग फिर उसी पुरानी अवस्थापर पहुंच जायंगे। कदापि नहीं। हम लोगोंसे कहा गया है कि राष्ट्रसङ्घका मैंडटे राज्य या शासनाधिकारसे एकदम भिन्न है क्योंकि इसमें जिम्मेदारीका सवाल है। इससे यह व्यक्त होता है कि देखरेख और आवश्यकता पड़नेपर महायताका अधिकार राष्ट्रसङ्घके हाथमें होगा।" हमारी समझमें इससे अच्छी कोई दूसरी युक्ति नहीं आती जिममें राष्ट्रीयताका सिद्धान्त भली प्रकार पालित हो और सब दल सन्तुष्ट रहें।

हम इस विषयको बहुत दूरतक ले गये। ब्रिटिश राज-नीतिज्ञ इतने के लिये भी तैयार नहीं हैं कि वे केवल उन प्रदेशोंके सम्बन्धमें ही अपना निश्चय मत प्रगट कर दें जो प्रदेश पूर्ण- रूपसे तुर्की हैं। ऐसी अवस्थामें उन प्रदेशोंकी तो चर्चा ही व्यर्थ है जिसमें तुर्कों की आवादी अधिकांश होते हुए भी सम्पूर्ण नहीं है। इसी बातकी सूचना मुसलमान चाहते हैं। उनकी यह मांग राष्ट्रपति विलसनकी १४ शर्ते तथा प्रधानमन्त्रीकी प्रति-