पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६६
खिलाफतकी समस्या

इतिहास इतना उज्वल है उसके लिये ये शब्द कितने उपयुक्त और सन्तोषजनक हैं। पर इन शब्दोंसे उस जातिको जरा भी सन्तोष नहीं हो सकता जो पक्का वादा और अटल विश्वास चाहती है। जो कुछ मिस्टर बालफोरने कहा है उससे यह नहीं व्यक्त होता कि उनका क्या अभिप्राय । हम लोग यह भी नहीं समझ सके हैं कि 'तुर्को साम्राज्यसे' मिस्टर बालफोर क्या अभिप्राय लगाते हैं। क्या उनके कहनेका यह अभिप्राय है कि उसका हाथ पैर काटकर उसे पंगु बना देनेपर भी तुर्की साम्राज्य ज्योंका त्यों बना रहेगा ? उसी भाषणमें आगे चल-कर उन्होंने कहा है:-किसी भी सरकारके लिये यह असम्भव बान है कि वह निश्चयपूर्वक यह बात बतला दे कि वह किम नीतिसे चलेगी। इसके सामने उनकी तुर्की साम्राज्यके लिये दी हुई आशा एकदमसे अन्धकारमें जा छिपती है। यहांपर यह भी लिख देना आवश्यक होगा कि यद्यपि मिस्टर बालफोर एक दूसरे वक्ताके भाषणका उत्तर दे रहे थे और यद्यपि उनमेम एकने उन्हें बार बार प्रधान मन्त्रीके उस भाषणका स्मरण दिलाया जो उन्होंने ५ वीं जनवरी १९१८ को दिया था और चाहा था कि उसीके अनुसार फैसला हो जाय पर उस विषयपर मिस्टर बालफोर एकदमसे चुप रहे।