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खिलाफतकी समस्या

परवादीको लाचार हो कर कायरोंकी तरह देखते रहना पड़े तो मुसलमान अब इन्तजार करना नहीं चाहते।

यह नामुमकिन बात है कि ऐसी हालत पर मुसलमानोंके लिये हमदर्दी न पैदा हो। यदि कोई कारगर इलाज मेरे खया-लमें आया होता तो मैं जरूर, खुशीके साथ, कोई जल्द कार्र-वाई करनेकी सिफारिश करता। यदि मैं देखता कि स्वरा.ज्यकी हलचलको मुल्तवी कर देनेसे हम खिलाफतके हकमें ज्यादा फायदा कर सकेंगे तो मैं खुशीसे ऐसी सलाह देना। करोड़ों मुसलमानोंका दर्ददिल हलका करनेके लिये अगर अस- हयोगके अलावा भी मुझे कोई उपाय नजर आता तो मैं खुशीसे उसमें लग जाता।

मगर मेरी नाकिस रायमें तो खिलाफतके अन्यायको मिटा-नेकी सबसे जल्दी असर करनेवाली अगर कोई दवा है तो वह स्वराज्य ही है और यही कारण है जो मेरे लिये तो स्वरा-ज्यका पाना ही खिलाफतके सवालका हल होना है और खिला-फतके सवालका तय होना ही स्वराज्य पाना है। मुसीबतके मारे हुए तुर्को को मदद पहुनेका सिर्फ एक ही उपाय हिन्दु- 'स्तानके लिये है और वह है खुद अपने अन्दर इतनी ताकत पैदा कर लेना कि जिससे वह अपने स्वत्वको प्रदर्शित कर सके। यदि वह एक मीयादके भीतर इतनी शक्ति नहीं बढ़ा सकता तो फिर हिन्दुस्तानके लिये दैवाधीन होने के सिवा बाहर निकलनेका दूसरा रास्ता नहीं है। जिसे खुद लकवा मार