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खिलाफतकी समस्या

लोगोंको न तो इस बातका यकीन हो पाया है कि बताई हुई मीयादके भीतर स्वदेशीका कार्यक्रम पूरा हो जायगा और न जो करामात इससे यताई जाती है उसके कायल वे ही पाये हैं। ऐसे संशयात्मा लोगोंको जबतक कि वे इससे बेहतर और जल्दी असर करनेवाला दूसरा उपाय नहीं बता सकते और उसे देशसे स्वीकृत नही करा सकते, इमसे अलग ही रहना लाजिम है अथवा शङ्कित चित्त होते हुए भी उन्हें शुद्ध हृदयसे स्वदेशीके काममें पड़ जाना चाहिये और इस प्रयोगको सचाईके साथ आजमाना चाहिये। और क्या यह सन्देह करना कि भारत स्वदेशी कार्यक्रमके अनुसार काम करनेमें समर्थ नहीं हैं,-यदि यह सन्देह ठीक हो तो यह नहीं बतलाता कि खिलाफतके काममें भारतको वास्तवमें कोई अनुराग नहीं है और वह उसके लिये कुछ भी त्याग करना नहीं चाहता है क्या हर एक हिन्दू और मुसलमानके लिये सारे विदेशी कपड़ोंसे मुंह मोड़ लेना और सिर्फ खादी ही पहनना, कोई बड़ा भारी स्वार्थत्याग है? और अगर भारतवर्षको यह क्षमता नहीं प्राप्त करना है तो क्या यह इस बातका सबूत नहीं होगा कि वह इस आर्थिक स्वार्थ त्यागके लिये तैयार नहीं है और इसलिये तुकिस्तानकी भी सहायताके लिये योग्य नही है ? आइए, हम सब मिलकर विदेशी कपड़ोंका पूरा वहिष्कार करें और जितनी जरूरत है उतनी खादी बनावे, फिर देखिये कि हम मंजिल पर पहुंच गये है।