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मुसलमानोंकी बेचैनी

लखनऊमें एकने यह मसला बडी सओदगीके साथ पेश किया था कि हम रालो ब्रदर्सका जो कि एक यूनानी कम्पनी है, बहिष्कार करके यूनानियोंसे बदला चुका ले तथा उन मजूरोंसे जो बन्दरोंपर काम करते हैं कहें कि विदेशी जहाजोंपर माल न चढावें। मैं तो समझता हूं कि ये दोनों सूचनाये अस्वा-भाविक हैं और उनको कार्यके रूपमें परिणत करना भी असम्भव है। जरा देर के लिये मान लीजिये कि हम एक क्षणमें राली ब्रदर्सका कारोबार तोड सकते हैं पर इसका असर यूनानपर क्या पड सकता है ? राली प्रदर्स सारा या ज्यादातर माल यूनान ही नही भेजते। उसका सारी दुनियामें व्यापार फैला हुआ है। अतएव स्वदेशीका काम उठानेकी अपेक्षा उनके व्यापारके साथ झगडना ज्यादा कठिन होगा। ऐसी कोशिशका एकमात्र परिणाम यह होगा कि उसके रगोरेशेमें जा अन्याय भरा हुआ है उसकी तो बात हो जाने दीजिये हम लोग उपहास्य बनेंगे और यह प्रगट होगा कि हम लोग ठीक उसके योग्य ही है । विदेशी जहाजोंपर काम करनेवाले मजदूरोंको छेडना भी मृगतृष्णाकी तरह है। यदि जनता पर हमारा इतना पूर्ण नियन्त्रण होता तो हम इस समरमें अबतक कभीके जीत गये होते। मालका बाहर जाना बन्द कर देनेके लिये हमें आज काम करनेवाले सारे मजूरोका काम हमेशाके लिये या एक अनिश्चित समय तकके लिये बन्द रखना होगा। यही नही, बल्कि ऐसा करते समय यह पहले ही मान लिया जाता है कि