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खिलाफत की समस्या


हाथ बटाऊ तो निःसन्देह दोनो जातियों में आजन्म की मैत्री हो जायगी । किसी भी तरह से मैंने देखा कि इस अवसर से लाभ उठाना अत्यावश्यक है । मैंने अच्छी तरह सोचा विचारा तो मुझे यह भी निश्चय हो गया कि जबतक ये दोनों जातियां परस्पर भेदभाव को त्यागकर मैत्रो के एक सूत्र में नहीं बंध जाती भारत का उद्धार असम्भव है ।

मिस्टर जचारिया ने आगे चल कर लिखा है:---"खिलाफत की शक्ति बल प्रयोग में है । खलीफा इस्लाम धर्म का प्रतिनिधि है । उसकी रक्षा का वह जिम्मेदार है । तलवारvके बल से भी उसे इस्लाम धर्म को रक्षा करनी होगी । ऐसी अवस्था में वह मनुष्य ( महात्मा गान्धी ) जिसने अहिंसा का ब्रत ग्रहण किया है ऐसी संस्थाको बचाने के लिये संग्राम करना चाहता है जो अपनी रक्षा के लिये तलवार का भा प्रयोग कर सकता है ।

खिलाफत के बारे में मिस्टर जचारिया का जो मत है वह सर्वथा सच है । पर उन्होंने अहिंसा के प्रतिपादक के कर्तव्य का गलत अनुमान लगाया है । जिस व्यक्ति ने अहिंसा का व्रत धारण किया है वह किसी वस्तु की रक्षा के लिये किसी तरह भी हिंसा या बल का प्रयोग नहीं करेगा पर इसका अभिप्राय यह नहीं है कि अहिंसाक सिद्धान्त पर वह उन संस्थाओं की सहायता भी नहीं कर सकता जो कि स्वयं अहिंसात्मक नही हैं । यदि इस बात को ठीक उलट दे तो हमें भारत की स्वराज्य की प्राप्ति के लिये भी चेष्टा नही करनी चाहिये क्योंकि यह तो