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खिलाफत और अहिंसा

निश्चय है कि स्वराज्य प्राप्त करनेके बाद भारतको कुछ सेना और पुलिस तो अवश्य ही रखनी पड़ेगी। इस बातको और भी स्पष्ट करनेके लिये एक दूसरा उदाहरण दे देना उचित होगा। मेरा लड़का अहिंसामें विश्वास नहीं करता इसलिये यदि उसके साथ किसी तरहका अन्याय किया गया है तो उसके प्रतिकारके लिये उसकी सहायता करना मेरा धर्म नहीं है।

यदि मिस्टर जवारियाके विचार प्रणालीके अनुसार काम किया जाय तो अहिंसाके सिद्धान्तको माननेवालेको व्यापार व्यवसायमें भी किसी तरहका भाग नहीं लेना चाहिये। कितने ही लोग मिस्टर जवारियाके भी मतके मिल सकते हैं जिनका यही विश्वास है कि अहिंसाके सिद्धान्तको स्वीकार करनेका अभिप्राय यह है कि हर तरहके कारबारका बन्द कर दिया जाय।

पर अहिंसाके सिद्धान्तसे मेरा यह अभिप्राय नहीं है। मेरी धारणा यह है कि आहिंसाके व्रतको ग्रहण करनेवालेको स्वयं किसी प्रकार हिंसा नहीं करनी चाहिये और यथासाध्य समझा बुझाकर लोगोंको अहिंसात्मक होनेके लिये प्रेरित करना चाहिये। पर यदि कोई व्यक्ति या संस्था अहिंसाके सिद्धांतसे पूर्णतया सहमत नहीं होती और उसकी मांग न्यायोचित है तो यदि मैं जान बूझकर उसको सहायता नहीं करता तो मैं अपने साथ विश्वासघात कर रहा हूं। जब मैं यह जान गया हूं कि मुसलमानोंका पक्ष उचित और न्याययुक्त है और मित्र शक्तियां बेईमानीके साथ इस्लामके नाशकी