पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५४५

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खिलाफत

बड़ी नाजुक हो गई। दूसरे वर्ष मैं हिन्दू-मुसलमानोंके मेल और टर्कीसे सम्बन्ध रखनेवाले विचारों को लेकर भारतवर्षमें आया। और मैने यहाँ आने पर अनभव किया कि मैं इन प्रश्नोंके ठीक ठोक हलकर सकनेमें सहायता कर सकूँगा। मैंने अपना जीवन दो बातोंके लिए अर्पण किया है। हिन्दू मुसलमानोंका स्थाई मेल और सत्याग्रह। इनमेंसे सत्याग्रहकी ओर मेरा ध्यान प्राय: अधिक है, क्योकि इसके क्षेत्र बहुत विस्तृत है। इस आन्दोलनके प्रभाव क्षेत्रमे सभी आ जाते हैं। और यदि हम सत्याग्रहके सिद्धान्तका स्वाकार कर ले तो मेल अपने आप हो जायगा। जिस प्रश्नका उत्तर में इस समय देना चाहता हूं वह यह है कि यूरोपीय महायुद्धके कारण मुसलमानोंके सम्बन्ध में जो प्रश्न उठ खड़ा हुआ है उसके हल करनेमें मे क्या सहायता दे सकता हूं। भारतवर्ष में आने के पश्चात् मैं अच्छे अच्छे मुसलमान नेताओंकी नलाश करने लगा। मेरी यह अभिलाषा दिल्ली पहुँच कर पूगे हुई। मै अली भाइयोसे मिला, जिन्हें मैं पहलेसे भी जानता था। हम लागॉमें पहली बारके मिलनेसे ही प्रेम हो गया। जब मैं डाकृत अन्साररास मिला मुसलमान मित्रों का दायरा और भी बढ़ गया, ओर अन्तमें इसमें लखनऊ मौलाना अब्दुलबारी मा आ गये। मैंने अपने इन सब मित्रों तथा भारत भरके और बहुतसे मुसलमानोंके साथ इस इसलामी प्रश्न पर विचार किया है और मुझ मालूम होता है कि यह बड़े महत्वका प्रश्न है। यह प्रश्न रौलट कानुनको रह करानकी अपेक्षा भी बड़ा है,