पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५४७

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खिलाफत


बयान शान्ति-पूर्ण, पक्षपातरहित भौर सप्रमाण होना चाहिये जो कि इस विषय के निष्पक्ष जिज्ञासु के हृदय पर असर डाल सकेश । समय शीघ्रताके साथ जा रहा है, और यदि आप फौरन उस ओर न बढ़ेंगे, जिस ओर जाना चाहते हैं, तो फिर कुछ न हो सकेगा । क्योंकि राष्ट्र-संयोग के विचारों का भिन्न भिन्न देशों के हिताहित पर जो प्रभाव पड़ता है उसका खयाल रखते हुये जितना शीघ्र सम्भव है उतना शीघ्र वह आगे बढ़ रहा है । और जब आप यह प्रगट कर दें कि आप क्या चाहते हैं उस समय यह सोचा जा सकता है कि इसके प्राप्त करने के क्या क्या उपाय हो सकते हैं ।

यह पूछा जा सकता है कि मैं, जो एक हिन्दू हूं, एक इसलामी सवाल के लिये अपने दिमाग को क्यों तकलीफ देता । इसका उत्तर यह है कि जब आप मेरे पड़ोसी हैं, मेरे देशवासी हैं, तो यह मेरा कर्तव्य है कि मैं आपके दुःख में हाथ बटाऊ। मुझे हिन्दु-मुसलमानों के मेल के विषय में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं, यदि अवसर आने पर मैं अपने विचारो को कार्य-रूप में परिणत नहीं करता । आप जानते हैं कि दिल्ली में होनेवाली युद्ध-कानफरेंस के पीछे ही मैंने वाइसराय के नाम जो पत्र प्रकाशित किया था उसमें इस इसलामी प्रश्न को उठाया था । उस समय से जब कभी मुझे मौका मिला है मै कभी उचित स्थानों पर अपनी राय जाहिर करने में नहीं चूका हूँ ।