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खिलाफतकी समस्या


हृदयकी बातोंको साफ साफ कह दिया है। शेखुल-इस्लामको गिरफ्तारीकी उन्होंने दो शब्दोंमें निन्दा की है । बम्बईकी हालकी सभामें मुसलमानोंकी मांग फिर उसी तरह स्पष्ट शब्दोंमें दोहराई गई है और यह भी बतला दिया गया है कि यदि सन्तोषजनक निपटारा न हुआ तो क्या कार्रवाई को जायगो। सरकारके साथ सहयोग करना छोड़ देना कठिन बात है। और यदि साध्य होता तो मुसलमान लोग इसे बचाये होते पर उन्होंने देखा कि वे हर तरहसे लाचार कर दिये गये हैं और उन्हें वाध्य होकर इसे आरम्भ करना पड़ा। उपाधियोंका परित्याग ही इसकी (सहयोगत्यागकी ) नींव डालता है। यहींसे खिलाफत आन्दोलन नया मार्ग पकड़ता है। हमारी आन्तरिक इच्छा है कि ईसाई शक्तियां इस स्थितिकी भीषणताको समझ कर अपनी अनुदार वृत्तिमे काम लेना छोड़ दें ।