पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५७६

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खिलाफतकी समस्या

युद्ध हुए विना नहीं रह सकता। इस पत्रने आगे चलकर फिर लिखा है : -“यदि सन्धिकी शर्ते चरितार्थ हो गई तो निकट पूर्णपर ब्रिटनका सोलहो आना अधिकार हो जायगा। कुछ तो सीधे उन कतिपय प्रदेशोंपर अधिकार रखनेसे और कुछ प्रकारान्तरसे अर्थात् उनके अनुयायी यूनानियों द्वारा।'

इससे व्यक्त है कि सन्धिकी इन शर्तीको न तो इटालीकी प्रजा ही स्वीकार करती है और न प्रधान मन्त्री ही इससे सहमतहैं। उन्होंने कायरतासे उसपर हस्ताक्षर तो कर दिया है पर किसी तरहकी जिम्मेदारीसे घे सम्बन्ध नहीं रखना चाहते। इटालीकी बाबत तो आप जान गये। अब फरासीसी और अंग्रेज शासकवर्ग तथा प्रजा शेष रह गई। मुहम्मद अलीने जो तार, पत्र और खरीते भेजे हैं उनसे विदित हाता है कि तुर्कीके प्रश्नपर फरासीसो राजा और प्रजा दानोंका मत आशाजनक है। यही बात कुछ खास खास फरांसोसी पत्रोंके मतोंसे भी पुष्ट हो जाती है। पर अंग्रेजोंका मत इसके पक्षमें नहीं है। फरांसीसी राजनीतिज्ञोंका इस सन्धिकी ओर क्या भाव हैं उसका दिग्दर्शन एल० हुमानिटाम प्रकाशित मि• पाल लुईके पत्रसे हो जाता है। उन्होंने लिखा है:-

'यूरोपके पूर्व प्रदेशोंमें ब्रिटिश अपनी साम्राज्यवादकी अमि. ,लाषाको पूरी तरहसे चारितार्थ कर रहा है। वह तुर्कोका अंगभंग करके उसे एक छोटासा प्रदेश बनाकर अपने अनुयायी राज्यों के बीच में अथवा अपने अधिकृत प्रदेशों के बीच में रख छोड़ना