पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/८५

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ससक आत्मप्रशंसाके साथ यह कहा गया कि यह “अत्यन्त मूर्खतापूर्ण कार्यक्रम स्वतः निष्प्राण होकर मर जायगा।" उस समय दमन करना उचित नहीं समझा गया। इसलिये नरमदलवालोंको उत्तेजित करनेका पूरा प्रयास किया गया । यह कहकर कि यदि अंग्रेजोंका हाथ हट गया तो भारत अराजकतामें निमग्न हो जायगा, डरानेकी चेष्टा की गयी। यह कहा गया कि असहयोगी लोग देशको बोलशेविज्मकी ओर गिरा रहे हैं और एग्लोइण्डियन पत्रोंमें इस आशयके भयोत्पादक लेख निकलते थे कि भारत ऊंची पहाड़ी चोटोसे ढकेला जानेवाला है। हिन्दू मुसलमानों में मतभेद उत्पन्न करनेके लिये अफगान आक्रमणका हौआ खड़ा किया गया । कौंसिलके सदस्योंसे सरकारकी इस विपत्तिके समय उसका साथ देनेका साग्रह अनुरोध किया गया।

सर हारकोट बटलरका आतंक ।

सर हारकोर्ट बटलरने एक भाषणमें कहा, "व्यवस्थापक समाके सदस्यो, मैं आप लोगोंसे प्रार्थना करता हूं कि इस सभामें तथा इसके बाहर अपने अपने स्थानोंमें अपनी सरकारकी सहायता कीजिये ।” गवर्नर महोदय जानते थे कि व्यवस्थापक सभा केवल सरकारी बातोंको दुहरा दिया करती है। अतः उसकी सहयताका कोई महत्व नहीं है। इसीलिये उन्होंने सदस्योंले बाहर निकलकर जनताके बीच में काम करनेके लिये कहा। परन्तु व्यवस्थापक समाके सदस्य जानते थे कि