पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ७६ )


निर्वाचक जिनके हम विश्वासपात्र समझे जाते हैं, हमारा कैसा सागत करेंगे, इसलिये उन्होंने चुप पड़ा रहना ही अच्छा समभा। यह बात सर हारकर्ट बटलर भी समझ गये इसलिये उन्होंने एक विचित्र सर्कुलर द्वारा सब किस्मतोंके कमिश्नरोंको, नरमदलवालोंको उभारनेका अनुरोध किया इस पत्रसे कुछ चुने हुए अवतरण नीचे दिये जाते हैं:-


“अपनी सफलता असफलताके अनुसार असहयोग भी अपने कार्यक्रमको बार बार बदलता रहता है। उसकी प्रणालियोंका पहलेसे अनुमान नहीं किया जा सकता, इसलिये प्रतीकार- स्वरूप जो प्रणालियां निकाली जाती हैं वे उससे पिछड़ी रहती हैं।


“असहयोग आन्दोलनको हरानेके ही उद्देश्यसे देशके नरम विचारवालोंका सङ्गठन और उपयोग किया जाय।"


“यदि सरकारी कर्मचारी अपनेको खुलकर असहयोगी विरोधी प्रकटकर दे तो शायद नरमदलमें वह क्रियाशीलता और एकलक्ष्यता आजाय जिसकी उसमें कमी है।”


इसी प्रकारका अनुरोध अन्य प्रान्तिक शासकोंने भी किया।

भारत सरकारका प्रान्तीय सरकारोंको परामर्श ।


१९२१ जनवरीतक यह बात स्पष्ट हो गयी कि नरमदल ब्रिटिश जनताकी आंखोंमें धूल झोंकनेका काम तो दे सकता है पर इस राष्ट्रीय आन्दोलनके दबानेमें असमर्थ है। नागपुर कांग्रसके परिणामसे सरकार खिन्न हुई क्योंकि उसे यह आशा