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[सातवां
याक़ूतीतख़्ती


मेरी बात सुनकर हमीदा की आंखे फिर लाल होगई, पर उसने अपने उमड़ते हुए क्रोध के बेग को रोक कर कहा, "यह पहाड़ी मुल्क मेरी पैदाइश की जगह है, चुनांचे यह मेरा बिहिश्त है। बस, इसे आप दोजख न कहें। मैं इस पहाड़ी मुल्क के सर्दार मेहरखां की एक नाचीज़ दुख्तर हूं, इसलिये यह मैं नहीं कह सकती कि आप गुनहगार हैं; क्योंकि इस बात का जानने वाला सिर्फ वही पर्वरदिगार है। बस, मैं गुनहगार को नज़ात देने नहीं, बल्कि आपकी नेकियों का बदला चुकाने आई हूं और अबतक भी अपने फर्ज़ को अदा नहीं कर सकी हूं। क्योंकि यह तो तभी हो सकेगा, जबकि मैं आपको खुशी खुशी अफरीदी सिवाने के बाहर कर सकूँगी!"

हमीदा की बातें सुनकर मैंने कहा,-" प्यारी, हमीदा! मैं तो जल्लादों की गोलियां खाकर मर गया था, फिर मैं क्योंकर जी गया?"

यह सुनकर हमीदा मुस्कुराने लगी और उसने मेरी ओर प्रेमपूर्वक देखकर कहा,-"आप मरे न थे, क्योंकि मरने पर क्या कभी कोई जी सकता है! आप सिर्फ बेहोश होगए थे, पर इस जगह आप क्योंकर आए, यह बात फिर कभी मैं आपसे कहूंगी, क्योंकि इस वक्त आप इतने काहिल होरहे हैं कि ज्याद: बात चीत करने से आपको फिर बेहोशी दबा लेगी।"

मैंने घबरा कर कहा,- अच्छा, तो मुझे यहां आए कैदिन हुए?"

हमीदा ने कहा,-"आज पूरे पांच दिन।"

मैंने कहा,-"पांच दिन! अस्तु, तो अभी मुझे कबतक यहां इस तरह पड़ा रहना पड़ेगा?"

हमीदा ने कहा,-"जबतक आप बखूबी भलेचंगें न होजांयगे। क्योंकि यह सारा अफरीदी जज़ीरा आपका दुश्मन हो रहा है, इसलिए जबतक आपके जिस्म में बखूबी ताकत न आले, मैं हर्गिज़ आपको यहां से जाने न दूंगी।"

मैंने कहा,-" तो क्या यह जगह तुम्हारे महल के अन्दर है?"

हमीदा,-"नहीं, लेकिन इसका मिलान मेरे महल से जरूर है। मगर खैर, आप घबराय नहीं, क्योंकि अब आप ऐसे मुकाम पर हैं कि जहांपर सिवाय मेरे और मेरी बहिन के, और कोई तीसरा शाल आही नहीं सकता।"

इसके बाद मैं फिर कुछ न बोला, क्योंकि इतनी ही बातचीत