पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/१०२

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योगवाशिष्ठ।

हे रामजी! यह मोक्ष उपाय संहिता है इसे चित्त को एकाग्र करके सुनो, इससे परमानन्द की प्राप्ति होगी। प्रथम शम और दम को धारण करो सम्पूर्ण संसार की वासना त्याग करके उदारता से तृप्त रहने का नाम शम है और बाह्य इन्द्रियों के वश करने को दम कहते हैं। जब प्रथम इनको धारण करोगे तब परमतत्त्व का विचार आप ही उत्पन्न होगा और विचार से विवेक द्वारा परमपद की प्राप्ति होगी। जिस पद को पाकर फिर कदाचित् दुःख न होगा और अविनाशी सुख तुमको प्राप्त होगा। इसलिये इस मोक्ष उपाय संहिता के अनुसार पुरुषार्थ करो तब आत्मपद को प्राप्त होगे। पूर्व जो कुछ ब्रह्माजी ने हमको उपदेश दिया है सो मैं तुमसे कहता हूँ। इतना सुनकर रामजी बोले, हे मुनीश्वर! आपको जो ब्रह्माजी ने उपदेश किया था सो किस कारण किया था और कैसे आपने धारण किया था सो कहो? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! शुद्ध चिदाकाश एक है और अनन्त, अविनाशी, परमानन्दरूप, चिदानन्द-स्वरूपब्रह्म है उसमें संवेदन स्पन्दरूप होता है वही विष्णु होकर स्थित हुआ है। वे विष्णुजी स्पन्द और निस्स्पन्द में एकरस हैं कदाचित् अन्यथाभाव को नहीं प्राप्त होते। जैसे समुद्र में तरङ्ग उपजते हैं वैसे ही शुद्ध चिदाकाश से स्पन्द करके विष्णु उत्पन्न हुए हैं। उन विष्णुजी के स्वर्णवत् नाभिकमल से ब्रह्माजी प्रकट हुए। उन ब्रह्माजी ने ऋषि और मुनीश्वरों सहित स्थावर जंगम प्रजा उत्पन्न की और उस मनोराज से जगत् को उत्पन्न किया। उस जगत् के कोण में जो जम्बूद्वीप भरतखण्ड है उसमें मनुष्य को दुःख से आतुर देख उनके करुणा उपजी जैसे पुत्र को देखकर पिता के करुणा उपजती है। तब उनके सुख के मिमित्त तप उत्पन्न किया कि वे सुखी हों और आज्ञा की कि तप करो। तब वे तप करने लगे और उस तप करने से स्वर्गादिक को प्राप्त होने लगे। पर उन सुखों को भोगकर वे फिर गिरे और दुःखी हुए ब्रह्माजी ने ऐसे देखकर सत्यवाक् रूप धर्म को प्रतिपादन किया और उनके सुख के निमित्त मात्रा की। उस धर्म के प्रतिपादन से भी लोगों को सुख प्राप्त होने लगा और वहाँ भी कुछ काल सुख भोग कर फिर गिरे और दुखी