पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/११६

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योगवाशिष्ठ।

होती हैं। हे रामजी! जो पुरुष आध्यात्मिकादि ताप से जलता है उसके हृदय में कदाचित् शम की प्राप्ति हो तो सब ताप मिट जाते हैं। जैसे तप्त पृथ्वी वर्षा से शीतल हो जाती हे वैसे ही उसका हृदय शीतल हो जाता है। जिसको शम की प्राप्ति हुई है सो सब क्रिया में आनन्दरूप है—उसको कोई दुःख नहीं स्पर्श करता। जैसे वज्र और शिला को वाण नहीं वेध सकता वैसे ही जिस पुरुष ने शमरूपी कवच पहिना है उसको आध्यात्मिकादि ताप बेध नहीं सकते—वह सर्वदा शीतलरूप रहता है। हे रामजी! तपस्वी, पण्डित, याज्ञिक और धनाढ्य पूजा में मान करने योग्य हैं, परन्तु जिसको शम की प्राप्ति हुई है सो सबसे उत्तम और सबके पूजने योग्य है। उसके मन की वृत्ति आत्मतत्त्व को प्रहण करती है और सब क्रिया में सोहती है। जिस पुरुष को शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध क्रिया के विषयों के इष्ट अनिष्ट में राग द्वेष नहीं होता उसको आन्तात्मा कहते हैं। हे रामजी! जो संसार के रमणीय पदार्थ में वध्यमान नहीं होता भोर आत्मानन्द से पूर्ण है उसको शान्तिमान् कहते हैं। उसको संसार के शुभ अशुभ का मलिनपना नहीं लगता वह तो सदा निर्लेप रहता है जैसे आकाश सब पदार्थों से निर्लेप है वैसे ही शान्तिमान् सदा निर्लेप रहता है। हे रामजी! ऐसा पुरुष इष्ट विषय की प्राप्ति में हर्षवान् नहीं होता और अनिष्ट की प्राप्ति में शोकवान नहीं होता। वह अन्तःकरण से सदा शान्त रहता है और उसको कोई दुःख स्पर्श नहीं करता, वह अपने आपमें सदा परमानन्दरूप रहता है । जैसे सूर्य के उदय होते ही अन्धकार नष्ट हो जाता है वैसे ही शान्ति के पाने से सब दुःख नष्ट होकर सदा निर्विकार रहता है। हे रामजी! वह पुरुष सब चेष्टा करते दृष्टि पाता है परन्तु सदा निर्गुणरूप है, कोई किया उसको स्पर्श नहीं करती। जैसे जल में कमल निलेप रहता है वैसे ही शान्तिमान सदा निर्लेप रहता है। हे रामजी। जो पुरुष बड़ी राज्य-सम्पदा और बड़ी आपदा को पाकर ज्यों का त्यों अलग रहता है उसे शान्तिमान कहिये। हे रामजी! जो पुरुष शान्ति से रहित है उसका चित्त क्षण-क्षण राग-द्वेष से तपता है और जिसको शान्ति की