पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/११७

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मुमुक्षु प्रकरण।

प्राप्ति हुई है सो भीतर बाहर शीतल भोर सदा एक रस है। जैसे हिमालय सदा शीतल रहता है वैसे ही वह सदा शीतल रहता है। उसके मुख की कान्ति बहुत सुन्दर हो जाती है। जैसे निष्कलङ्क चन्द्रमा है वैसे ही शान्तिमान् निष्कलङ्क रहता है। हे रामजी! जिसको शान्ति प्राप्त हुई है सो परम आनन्दित हुआ है और उसी को परम लाभ प्राप्त होता है ज्ञानी इसी को परम पद कहते हैं। जिसको पुरुषार्थ करना है उसको शान्ति की प्राप्ति करनी चाहिए। हे रामजी! जैसे मैंने कहा है उस क्रम से शान्ति का ग्रहण करो तब संसार समुद्र के पार पहुँचोगे।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे मुमुक्षुप्रकरणे शमनिरूपणन्नाम त्रयोदशस्सर्गः॥१३॥

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! अब विचार का निरूपण सुनिये। जब हृदय शुद्ध होता है तब विचार होता है और शास्त्रार्थ के विचार द्वारा बुद्धि तीक्ष्ण होती है। हे रामजी! अज्ञानवन में आपदारूपी बेलि की उत्पत्ति होती है उसको विचाररूपी खङ्ग से जब काटोगे तब शान्तआत्मा होंगे। मोहरूपी हस्ती जीव के हृदयकमल का खण्ड-खण्ड कर डालता है—अभिप्राय यह है कि इष्ट अनिष्ट पदार्थ में राग द्वेष से छेदा जाता है। जब विचाररूपी सिंह प्रकटे तब मोहरूपी हस्ती का नाश कर शान्तात्मा होंगे। हे रामजी! जिसको कुछ सिद्धता प्राप्त हुई है उसे विचार और पुरुषार्थ से ही हुई है। जब प्रथम राजा विचारकर पुरुषार्थ करता है तब उसी से राज्य को प्राप्त होता है। प्रथम बल, दूसरे बुद्धि, तीसरे तेज चतुर्थ पदार्थ आगमन और पञ्चम पदार्थ की प्राप्ति इन पाँचों की प्राप्ति विचार से होती है अर्थात् इन्द्रियों का जीतना, बुद्धि आत्मव्यापिनी और तेज, पदार्थ का आगमन इनकी प्राप्ति विचार से होती है। हे रामजी। जिस पुरुष ने विचार का आश्रय लिया है वह विचार की दृढ़ता से जिसकी वाञ्छा करता है उसको पाता है। इससे विचार इसका परम मित्र है। विचाखार पुरुष आपदा में नहीं फँसता। जैसे तुम्बी जल में नहीं डूबती वैसे ही वह आपदा में नहीं डूबता। हे रामजी! वह जो कुछ करता है विचार संयुक्त करता है और विचार संयुक्त ही देता लेता है। उसकी सब क्रिया सिद्धता का कारण होती है और