पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/११९

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मुमुक्षु प्रकरण।

करता है और उससे आपदारूपी बेलि उत्पन्न होती है। अविचाररूपी घुन के खाये सूखे वृक्ष से सुखरूपी फल नहीं निकलते। अविचार उसका नाम है जिसमें शुभ और शास्त्रानुसार क्रिया न हो। हे रामजी! विवेक रूपी राजा है और विचाररूपी उसकी ध्वजा है जहाँ विवेकरूपी राजा आता है वहाँ विचाररूपी ध्वजा भी उसके साथ फिरती है और जहाँ विचार रूपी ध्वजा आती है वहाँ विवेकरूपी राजा भी आता है। जो पुरुष विचार से सम्पन्न है सो पूजने योग्य है। जैसे द्वितीया के चन्द्रमा को सब नमस्कार करते हैं वैसे ही विचारवान् को सब नमस्कार करते हैं। हे रामजी! हमारे देखते देखते अल्पबुद्धि भी विचार की दृढ़ता से मोक्षपद को प्राप्त हुए हैं। इससे विचार सब का परममित्र है। जैसे हिमालय पर्वत भीतर बाहर से शीतल रहता है वैसे ही वह भी शीतल रहता है। देखो, विचार से जीव ऐसे पद को प्राप्त होता है जो नित्य, स्वच्छ, अनन्त और परमानन्दरूप है। उसको पाकर फिर उसके त्याग की इच्छा नहीं होती और न ओर ग्रहण की ही इच्छा होती है। उसको इष्ट अनिष्ट सब समान हैं। जैसे तरङ्ग के होने और लीन होने में समुद्र समान रहता है वैसे ही विवेकी पुरुष को इष्ट अनिष्ट में समता रहती है और संसारभ्रम मिट जाता है। आधाराधेय से रहित केवल अद्वैत तत्त्व उसको प्राप्त होता है। हे रामजी! यह जगत् अपने मन के मोह से उपजता है और अविचार से दुःखदायी दीखता है। जैसे अविचार से बालक को वैताल भासता है वैसे ही इसको जगत् भासता है। जब ब्रह्मविचार की प्राप्ति हो तब जगत् का भ्रम नष्ट हो जावे। हे रामजी! जिसके हृदय में विचार होता है उसको समता की उत्पत्ति होती है जैसे बीज से अंकुर निकल आता है वैसे ही विचार से समता हो पाती है और विचारवान पुरुष जिसकी ओर देखता है उस ओर आनन्द दृष्टि आता है, दुःख नहीं भासता। जैसे सूर्य को अन्धकार नहीं दृष्टि आता वैसे ही विचारवान को दुःख नहीं दृष्टि आता। जहाँ अविचार है वहाँ दुःख है, जहाँ विचार है वहाँ सुख है। जैसे अन्धकार के प्रभाव से वैताल के भय का प्रभाव हो जाता है वैसे ही विचार से दुःख का अभाव हो जाता है। हे