भी कोई नहीं वह तो अजर, अमर, आनन्द, अनन्त, चित्स्वरूप, अचैत्य चिन्मात्र और अवाक्यपद है। वह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, आकाश से भी अधिक शून्य और स्थूल से भी स्थूल एक अद्वैत और अनन्त चिद्रूप है। इतना सुन रामजी ने पूछा, हे भगवन्! यह अचिंत्य, चिन्मात्र और परमार्थसत्ता जो आपने कही उसका रूप बोध के निनित्त मुझसे फिर कहो। वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जब महाप्रलय होता है तब सब जगत् नष्ट हो जाता है, पर ब्रह्मसत्ता शेष रहती है उसका रूप में कहता हूँ मनरूपी ब्रह्मा है मन की वृत्ति जो प्रवृत्त होती है वह एक प्रमाण, दूसरी विपर्यक, तीसरी विकल्प, चौथी प्रभाव और पाँचवीं स्मरण है। प्रमाणवृत्ति तीन प्रकार की है—एक प्रत्यक्ष; दूसरी अनुमान जैसे धुवाँ से अग्नि जानना और तीसरी शब्दरूप ये तीनों प्रमाणवृत्ति आप्तकामिका हैं। द्वितीय विपर्यक वृत्ति है—विपरीत भाव से तृतीय विकल्पवृत्ति है चेतन ईश्वररूप है और साक्षी पुरुषरूप है अर्थात् जैसे सीप पड़ी हो और उसमें संशय वृत्ति चाँदी की या सीपी की भासे तो उसका नाम विकल्प है। चतुर्थ निद्रा—अभाव वृत्ति है और पञ्चम स्मरणवृत्ति है यही पाँचों वृत्तियाँ हैं और इनका अभिमानी मन है जब तीनों शरीरों का अभिमानी अहंकार नाश हो तब पीछे जो रहता है सो निश्चल सत्ता अनन्त आत्मा है। मैं असत् नहीं कहता हूँ। हे रामजी! जाग्रत् के अभाव होने पर जब तक सुषुप्ति नहीं आती वह रूप परमात्मा का है अंगुष्ठ को जो शीत उष्ण का स्पर्श होता है उसको अनुभव करने वाली परमात्मसत्ता है जिसमें द्रष्टा, दर्शन और दृश्य उपजता है और फिर लीन होता है वह परमात्मा का रूप है। उस सत्ता में चेतन भी नहीं है। हे रामजी! जिसमें चेतन अर्थात् जीव और जड़ अर्थात् देहादिक दोनों नहीं हैं वह अचैत्य चिन्मात्र परमात्मारूप है। जब सब व्यवहार होते हैं उनके अन्तर आकाशरूप हैं—कोई क्षोभ नहीं ऐसी सत्ता परमात्मा का रूप है वह शून्य है परन्तु शून्यता से रहित है। हे रामजी! जिसमें द्रष्टा, दर्शन और दृश्य तीनों प्रतिविम्बित हैं और आकाशरूप है—ऐसी सत्ता परमात्मा का रूप है। जो स्थावर में स्थावरभाव और चेतन में चेतन