पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/१७

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वैराग्य प्रकरण।

और नहीं ठहरते वैसे ही वासना के क्षय होने पर पञ्चभूत का शरीर नहीं रहता। इससे सब अनर्थों का कारण वासना ही है। शुद्ध वासना में जगत् का अत्यन्त प्रभाव निश्चय होता है। हे शिष्य! अज्ञानी की वासना जन्म का कारण होती है और ज्ञानी की वासना जन्म का कारण नहीं होती। जैसे कच्चा वीज उगता है और जो दग्ध हुआ है सो फिर नहीं उगता वैसे ही अज्ञानी की वासना रससहित है इससे जन्म का कारण है और ज्ञानी की वासना रसरहित है वह जन्म का कारण नहीं। ज्ञानी की चेष्टा स्वाभाविक होती है। वह किसी गुण से मिलकर अपने में चेष्टा नहीं देखता। वह खाता, पीता, लेता, देता, बोलता, चलता एवम् और अन्य व्यवहार करता है अन्तःकरण में सदा अद्वैत निश्चय को धरता है कदाचित् द्वैतभावना उसको नहीं फुरती। वह अपने स्वभाव में स्थित है इससे उसकी चेष्टा जन्म का कारण नहीं होती। जैसे कुम्हार के चक्र को जब तक घुमावे तब तक फिरता है और जब घुमाना छोड़ दे तब स्थीयमान गति से उतरते उतरते स्थिर रह जाता है वैसे ही जब तक अहङ्कार सहित वासना होती है तब तक जन्म पाता है और जब अहङ्कार से रहित हुआ तब फिर जन्म नहीं पाता। हे साधो! इस अज्ञानरूपी वासना के नाश करने को एक ब्रह्मविद्या ही श्रेष्ठ उपाय है जो मोक्ष उपायक शान है। यदि इसको त्यागकर और शास्त्ररूपी गर्त में गिरेगातो कल्पपर्यन्त भी प्रकृत्रिम पद को न पावेगा। जो ब्रह्मविद्या का आश्रय करेगा वह सुख से आत्मपद को प्राप्त होगा। हे भारद्वाज! यह मोक्षउपाय रामजी और वशिष्ठजी का संवाद है, यह विचारने योग्य है और बोध का परम कारण है। इसे आदि से अन्तपर्यन्त सुनो और जैसे रामजी जीवन्मुक्त हो विचरे हैं सो भी सुनो। एक दिन रामजी अध्ययनशालासे विद्या पढ़के अपने गृह में आये और सम्पूर्ण दिन विचार सहित व्यतीत किया। फिर मन में तीर्थ ठाकुरद्वारे का संकल्प धरकर अपने पिता दशरथ के पास, जो अति प्रजापालक थे, आये और जैसे हंस सुंदर कमल को ग्रहण करे वैसे ही उन्होंने उनका चरण पकड़ा। जैसे कमल के फूल के नीचे कोमल तरैयाँ होती हैं और उन तरैयों सहित कमल को