पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/१८३

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उत्पत्ति प्रकरण।

आये मानों प्रलयकाल में समुद्र का क्षोम हुआ है और जल से पूर्ण प्रलय हुई सृष्टि मानों पुनः उत्पन्न हुई है। लीला इस प्रकार मन्त्री, टहलुये, पण्डित भोर बालकों को भर्ता विना देखे बड़े पाश्चर्य को प्राप्त हुई कि एक आदर्श को अन्तर बाहर दोनों ओर देखती है। इस प्रकार देखके हृदय की वार्ता किसी को न बताई और भीतर आकर कहने लगी कि बड़ा आश्चर्य है, ईश्वर की माया जानी नहीं जाती कि यह क्या है। इस प्रकार आश्चर्यमान होकर उसने सरस्वतीजी की आराधना की और सरस्वती कुमारी कन्या का रूप धरके आन प्राप्त हुई। तब लीला ने कहा, हे भगवति! मैं बारम्बार पूछती हूँ तुम उद्वेगवान न होना, बड़ों का यह स्वभाव होता है कि जो शिष्य बारम्बार पूछे तो भी खेदवान नहीं होते। अब में पूछती हूँ कि यह जगत् क्या है और वह जगत् क्या है? दोनों में कृत्रिम कौन है और प्रकृत्रिम कौन है? देवी बोली, हे लीले! तूने पूछा कि कृत्रिम कोन है और अकृत्रिम कौन है सो मैं पीछे तुझसे कहूँगी। लीला बोली, हे देवि! जहाँ तुम हम बैठे हैं वह अकृत्रिम है और वह जो मेरे भर्त्ता का स्वर्ग है सो कृत्रिम है, क्योंकि सूर्यस्थान में वह सृष्टि हुई है। देवी बोली, हे लीले! जैसा कारण होता है वैसा ही कार्य होता है। जो कारण सत् होता है तो कार्य भी सत् होता है और सत् से असत् नहीं होता और असत् से सत् भी नहीं होता और न कारण से अन्य कार्य होता है। इससे जैसे यह जगत् है वैसा ही वह जगत् भी है। इतना सुन फिर लीला ने पूछा, हे देवि! कारण से अन्य कार्यसत्ता होती है, क्योंकि मृत्तिका जल के उठाने में समर्थ नहीं और जब मृत्तिका का घट बनता है तब जल को उठाता है तो कारण से अन्य कार्य की भी सत्ता हुई। देवी बोली, हे लीले! कारण से अन्य कार्य की सत्ता तब होती है जब सहायकारी भिन्न होता है। जहाँ सहायकारी नहीं होता वहाँ कारण से अन्य कार्य की सत्ता नहीं होती। तेरे भर्ती की सृष्टि भी कारण बिना भासी है। उसका जीवपुर्यष्टक आकाशरूप था, वहाँ न कोई समवायकारण था, और न निमित्त कारण था इससे उसको कृत्रिम कैसे कहिये? जो किसी