पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२११

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उत्पत्ति प्रकरण।


वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! दोनों देवियों ने रणसंग्राम में क्या देखा कि एक महाशून्य वन है उसमें जैसे दो बड़े समुद्र उछलकर परस्पर मिलने लगें वैसे ही दोनों सेना जुड़ी हैं। तब उन्होंने क्या देखा कि सब योधाआन स्थित हुए हैं और मच्छनव्यूह और गरुड़व्यूह और चक्रव्यूह भिन्न-भिन्न भाग करके दोनों सेना के योधा एक-एक होकर युद्ध करने लगे हैं। प्रथम परस्पर देख एक ने कहा कि यह बाण चलाव और दूसरे ने कहा कि नहीं त् चला; उसने कहा नहीं तू ही प्रथम चला। निदान सब स्थिर हो रहे, मानो चित्र लिखे छोड़े हैं। इसके अनन्तर दोनों सेना के और योधा आये मानों प्रलयकाल के मेघ उछले हैं उनके माने से एक-एक योधा की मर्यादा दूर हो गई तब इकट्ठे युद्ध करने लगे और बड़े शखों के प्रवाह के प्रहार करने लगे। कहीं खङ्गों के प्रहार चलते थे और कहीं कुल्हाड़े, त्रिशूल, भाले, वरलियाँ, कटारी, छूरी, चक्र, गदादिक शस्त्र बड़े शब्द करके चलाने लगे। जैसे मेघ वर्षाकाल में वर्षा करते हैं वैसे ही शस्त्रों की वर्षा होने लगी। हे रामजी! प्रलयकाल के जितने उपद्रव थे सो सब इकट्ठे हुए। योधा युद्ध की ओर आये और कायर भाग गये। निदान ऐसा संग्राम हुआ कि अनेकों योधाओं के शिर काटे गये और उनके हस्ती घोड़े मृत्यु को प्राप्त हुए। जैसे कमल के फूल काटे जाते हैं वैसे ही उनके शीश काटे जाते थे। तब दोनों सेनाओं के राजा चिन्ता करने लगे कि क्या होगा। हे रामजी! इस युद्ध में रुधिर की नदियाँ चलीं, उनमें प्राणी बहते जाते थे और बड़े शब्द करते थे जिनके भागे मेघों के शब्द भी तुच्छ भासते थे। हे रामजी! दोनों देवियाँ संकल्प के विमान कल्प के आकाश में स्थित हुई तो क्या देखा कि ऐसा युद्ध हुआ है जैसे महाप्रलय में समुद्र एक रूप हो जाते हैं। और बिजली की नाई शस्त्रों का चमत्कार होता था। जो शूरवीर हैं उनके रक्त की जो दियाँ पृथ्वी पर पड़ती हैं उन बूंदों में जितने मृत्तिका के कणके लगे होते हैं उतने ही वर्ष वे स्वर्ग को भोगेंगे। जो शूरमा युद्ध में मृतक होते थे उनको विद्याधरियाँ स्वर्ग को ले जाती थीं और देवगण स्तुति करते थे कि ये शूरमा स्वर्ग को प्राप्त हुए हैं और अक्षय अर्थात्