पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२१७

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उत्पत्ति प्रकरण।

शक्ति है। चित् में जगत् भ्रम होता है, क्षण में कल्प और सम्पूर्ण जगत् उदय हो आता है और क्षण में सम्पूर्ण लय होता है। किसी को निमेष में कल्प हो आता है और किसी को क्रम से भासता है सो मन लगाकर सुनिये। हे रामजी! जब मरने की मूर्च्छा होती है तो उस महाप्रलयरूप मृत्यु मूर्च्छा के अनन्तर नाना प्रकार का जगत् फुर आता है जैसे स्वप्न में सृष्टि फुर आती है और जैसे संकल्प का पुर भासता है वैसे ही मृत्यु मूर्च्छा के अनन्तर सृष्टि भासती है। जैसे महाप्रलय के अनन्तर आदि विरादरूप ब्रह्मा होता है वैसे ही मृत्यु के अनन्तर इसका अनुभव होता है। यह भी विराट् होता है, क्योंकि इसका मनरूपी शरीर होता है। रामजी बोले, हे भगवन्! मृत्यु के अनन्तर जो सृष्टि होती है वह स्मृति से होती है, स्मृति बिना नहीं होती, इसलिये मृत्यु के अनन्तर जो सृष्टि हुई तो सकारणरूप हुई? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जब महाप्रलय होता है तब हरि हरादिक सबही विदेहमुक्त होते हैं। फिर स्मृति का सम्भव कैसे हो? हमसे आदि ले जो बोध आत्मा हैं जब विदेह मुक्त हुए हैं तब स्मृति कैसे सम्भव हो? अब के जो जीव हैं उनका जन्म-मरण स्मृति कारण से होता है, क्योंकि मोक्ष नहीं होता—मोक्ष का उनको अभाव है। हे रामजी! जब जीव मरते हैं तब उन्हें मृत्यु-मूर्च्छा होती है, पर कैवल्यभाव में स्थित नहीं होते; मूर्च्छा से उनका संवित् आकाशरूप होता है उससे फिर चित्तसंवेदन फुर आता है। तब उन्हें कम करके जगत् फुर आता है, पर जब बोध होता है तब तन्मात्रा और काल, क्रिया, भाव, अभाव, स्थावरजङ्गम जगत् सब आकाशरूप हो जाता है। जिनका संवेदन दृश्य की ओर धावता है उनको मृत्यु-मूर्च्छा के अनन्तर अज्ञान संवेदन फुरता है, उससे उन्हें शरीर और इन्द्रियाँ भास आती हैं। वह मन्तवाहक शरीर है परन्तु चिरकाल की प्राप्ति करके आधिभौतिक होता भासता है। तब देश, काल, क्रिया, आधार, आधेय उदय होकर स्थित होते हैं। जैसे वायु स्पन्द और निस्स्पन्दरूप है, पर जब स्पन्द होता है तब भासता है और निस्स्पन्द होने से नहीं भासता वैसे ही संवेदन