पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२९
उत्पत्ति प्रकरण।

हो गये। जब पहाड़ उड़ उड़के सिद्ध की सेना पर पड़े तब सिद्ध ने वज्र रूप अस्त्र चलाया जिससे पर्वत नष्ट हुए। जब इस प्रकार वन वर्षे तब विदूरथ ने ब्रह्म अन चलाया जिससे वज्र नष्ट हुए और ब्रह्म अन्न अन्तर्धान हो गये। हे रामजी! इस प्रकार परस्पर इनका युद्ध होता था। जो अन्न सिद्ध चलावे उसको विदूरथ विदारण करे और जो विदूरथ चलावे उसको सिद्ध विदारण कर डाले। निदान विदूरथ राजा ने एक ऐसा न चलाया कि राजा सिद्ध का रथ चूर्ण हो गया और घोड़े भी सब चौपट कर डाले। तब सिद्ध राजा ने रथ से उतर ऐसा अस्त्र चलाया कि विदूरथ का रथ और घोड़े नष्ट हुए और दोनों ढाल और तलवार लेकर युद्ध करने लगे। फिर दोनों के स्थवाहक और रथ ले आये, उसके ऊपर दोनों आरूढ़ होकर युद्ध करने लगे। विदूरथ ने सिद्ध पर एक बरछी चलाई जो उसके हृदय में लगी और रुधिर चला। तब उसको देख लीला ने देवी से कहा, हे देवि! मेरे भर्त की जय हुई है। हे रामजी! इस प्रकार लीला कहती ही थी कि सिद्ध ने बरछी चलाई सो विदूरथ के हृदय में लगी और उसको देख के विदूरथ की लीला शोकवान होकर कहने लगी, हे देवि! मेरा भर्ता है; दुष्ट सिद्ध ने बड़ा कष्ट दिया है। हे रामजी! फिर सिद्ध ने एक ऐसा खड्ग चलाया कि जिससे विदूरथ के पाँव कट गये और घोड़े भी कट गये पर तो भी विदूरथ युद्ध करता रहा। फिर सिद्ध ने विदूरथ के शिर पर खड्ग का प्रहार किया तो वह मूर्च्छा खाके गिर पड़ा। ऐसे देखके उसके सारथी रथ को गृह में ले आने लगे तो सिद्ध उसके पीछे दौड़ा कि मैं इसका शीश ले आऊँ, परन्तु पकड़ न सका। जैसे अग्नि में मच्छर प्रवेश नहीं कर सकता वैसे ही देवी के प्रभाव से विदूरथ को वह न पकड़ सका।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे उत्पत्तिप्रकरणेविदूरथमरणवर्णनन्नाम
चतुस्त्रिंशत्तमस्सर्गः॥३४॥

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! तब सारथी राजा को गृह में ले आया तो स्त्रियाँ, मन्त्री, बान्धव और कुटुम्बी रुदन करने लगे और बड़े शब्द होने लगे। सिद्ध की सेना लूटने लगी। हाथी, घोड़े स्वामी बिना फिरते