पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२३८

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योगवाशिष्ठ।

से आधिभौतिक हो गया और जब आधिभौतिक हुआ तब प्रथम उसको जन्म भी हुआ और मरण भी हुआ। जब तेरा भर्ती मृतक हुआ तब उसको अपना जन्म और कुल, लीला का जन्म, माता, पिता और खीला, के साथ विवाह भास माये। जैसे तू पदम को भास भाई थी वैसे ही वह सब विदूरथ को भास आये। हे लीले! ब्रह्म सर्वात्मा है; जैसा जैसा उसमें तीव्र स्पन्द होता है वैसे ही सिद्ध होता है। मैं बप्तिरूपचैतन्यशक्ति हूं, मुझको जैसी इच्छा करके लोग पूजते हैं वैसे ही फल की प्राप्ति होती है। हे लीले! जैसी जैसी इच्छा करके कोई हमको पूजता है उसको वैसे ही सिद्धता प्राप्त होती है। लीला ने जो मुझसे वर माँगा था कि मैं विधवा न होऊँ और इसी शरीर से भर्ती के निकट जाऊँ और मैंने कहा था कि ऐसे ही होगा इसलिए मृत्यु-मूर्च्छा के अनन्तर उसको अपना शरीर भास आया और अपने शरीर सहित जहाँ तेरे भर्ता पद्म का शव पड़ा था वहाँ मण्डप में वैसे ही शरीर से उसके निकट जा प्राप्त हुई है, हे लीले! उसको यह निश्चय रहा कि मैं उसी शरीर से भाई हूँ।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे उत्पतिप्रकरणे लीलोपाख्याने मृत्युमूर्च्छा
नन्तरप्रतिमावर्णनत्राम पञ्चत्रिशत्तमस्सर्गः॥३५॥

वशिष्ठजी बोले हे रामजी! जिस प्रकार वह लीला पद्म राजा के मण्डप में जा प्राप्त हुई है वह सुनिये। जब वह लोला मृत्यु-मूर्च्छा को प्राप्त हुई तो उसके अनन्तर उसको पूर्व के शरीर की नाई वासना के अनुसार अपना शरीर भास आया और उसने जाना कि मैं देवी का वर पाके उसी शरीर से भाई हूँ। वह अन्तवाहक शरीर से आकाश में पक्षी की नाई उड़ती जाती थी, तब उसको अपने आगे एक कन्या दृष्टि भाई। इससे लीला ने कहा, हे देवि! तू कौन है? देवी ने कहा, मैं ज्ञप्ति देवी की पुत्री हूँ और तुझे पहुँचाने के लिये भाई हूँ। लीला ने कहा है देवीजी! मुझे मेरे भर्ता के पास ले चलो। हे रामजी। तब वह कन्या आगे और लीला पीले हो दोनों भाकाश में उड़े और चिरकाल पर्यन्त भाकाश में उड़ती गई। पहले मेघों के स्थान मिले, फिर वायु के स्थान मिले, फिर सूर्य का मण्डप भोर तारामण्डल मिला, फिर और लोकपालों