पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२४८

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योगवाशिष्ठ।

गृह में जन्म होता है और जो भोग से निष्काम होता है तब सन्तजनों के गृह में जन्म लेता है। अब मध्यम धर्मात्मा की मृत्यु सुनो। हे लीले! जो मध्यम धर्मात्मा मृतक होता है उसको शीघ्र ही चेतन्यता फुर आती है और वह स्वर्ग में जाकर अपने पुण्य के अनुसार स्वर्ग भोग के फिर गिरकर किसी फल में स्थित होता है। जब फिर उस फल को कोई पुरुष भोजन करता है तब पिता के वीर्य द्वारा माता के गर्भ में आता है और वासना के अनुसार जन्म लेता है। अल्प धर्मात्मा जब मृतक होता है तब उसको यह फुर आता है कि मैं मृतक हुआ हूँ, मेरे बान्धवों ओर पुत्रों ने मेरी पिण्डक्रिया की है और पितरलोक में चला जाता हूँ। वहाँ वह पितरलोक का अनुभव करता है और वहाँ के सुख भोग के गिरता है तब धान्य में स्थित होता है। जब उस धान्य को पुरुष भोजन करता है तब वीर्यरूप होके स्थित होता है। फिर उस वीर्य दारा माता के गर्भ में आ जाता है और वासना के अनुसार जन्म लेता है। हे लीले! जब पापी मृतक होता है तब उसको महाकूर मार्ग भासता है मोर उस मार्ग पर चलता है जिसमें चरणों में कण्टक चुभते हैं; शीश पर सूर्य तपता है और धूप से शरीर कष्टवान होता है। जो पुण्यवान होता है उसको सुन्दर छाया का अनुभव होता है और बावली और सुन्दर स्थानों के मार्ग से यमदूत उसको धर्मराज के पास ले जाते हैं। धर्मराज चित्रगुप्त से पूछते हैं तो चित्रगुप्त पुण्यवानों के पुण्य और पापियों के पाप प्रकट करते हैं और वह कमों के अनुसार स्वर्ग और नरक को भुगतता है फिर वहाँ से गिरके धान्य अथवा और किसी फल में आन स्थित होता है। जब उस अन्न को पुरुष भोजन करता है तब वह स्वमवासना को लेकर वीर्य में आन स्थित होता है। जब पुरुष का स्त्री के साथ संयोग होता है तब वीर्य दारा माता के गर्भ में आता है। वहाँ भी अपने कर्मों के अनुसार माता के गर्भ को प्राप्त होता है और उस माता के गर्भ में इसको अनेक जन्मों का स्मरण होता है। फिर बाहर निकल के महामूढ़ बाल अवस्था धारण करता है, तब उसे पिछली स्मृति विस्मरण हो जाती है और परमार्थ की कुछ सुध नहीं