पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२५३

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उत्पत्ति प्रकरण।

वासना दृढ़ होती है तो आपको पिण्डवान् ही जानता है और भावना के वश से असत् भी सत् हो जाता है। इससे पदार्थों का कारण भावना ही है; कारण बिना कार्य का उदय नहीं होता। महाप्रलय पर्यन्त कारण बिना कार्य होता नहीं देखा और सुना भी नहीं। इससे कहा है कि जैसी वासना होती है वैसा ही अनुभव होता है। रामजी ने पूछा हे भगवन्! जिस पुरुष को अपने पिण्डदान आदि कमों की वासना नहीं वह जब मृतक होता है तब क्या प्रेतवासना संयुक्त होता है कि मैं पापी और प्रेत हूँ? अथवा पीछे उसके बान्धव जो उसके निमित्त क्रियाकर्म करते हैं और जो बान्धवों ने पिण्डक्रिया की है उससे उसे यह भावना होती है कि मेरा शरीर हुधा हे वह क्रिया उसको प्राप्त होती है वा नहीं होती? अथवा उसके बान्धवों के मन में यह दृढ़ भावना हुई कि इसको शवक्रिया प्राप्त होगी और वह अपने मन में धन अथवा पुत्रादिकों के प्रभाव से निराश है और किसी प्रभाव से किसी ने पिण्डादिक क्रिया की वह उसको प्राप्त होती है अथवा नहीं होती? भाप तो कहते हैं कि भावना के वश से असत् भी सत् हो जाता है यह क्या है? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! भावना; देश, काल, क्रिया, द्रव्य और सम्पदा इन पाँचों से होती है। जैसी भावना होती है वैसी ही सिद्ध होती है, जिसकी कर्तव्यता बली होती है उसकी जय होती है। पुत्र दारादिक बान्धव सब वासनारूप हैं। जो धर्म की वासना होती है तो बुद्धि में प्रसन्नता उपज आती है और पुण्यकर्मों से पूर्व भावना नष्ट हो शुभगति प्राप्त होती है। जो भति बली वासना होती है उसकी जय होती है। इससे अपने कल्याण के निमित्त शुभ का अभ्यास करना चाहिये। रामजी बोले, हे भगवन्! जो देश, काल, क्रिया, द्रव्य और सम्पदा इन पाँचों से वासना होती है तो महाप्रलय और सर्ग का आदि में देश, काल, क्रिया, द्रव्य और सम्पदा कोई नहीं होती तो जहाँ पाँचों कारण नहीं होते और उसकी वासना भी नहीं होती उस अद्वैत से जगभ्रम फिर कैसे होता है ? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! महापलय और सर्ग की आदि में देश, काल, क्रिया, द्रव्य और सम्पदा कोई नहीं