पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२६०

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योगवाशिष्ठ।

अनुग्रह किया है। अब कृपा करके मुझको यह वर दो कि मेरी आयु बढ़ी हो; निष्कपटक राज्य करूँ; लक्ष्मी बहुत हो; रोग कष्ट न हो और आत्मवान से सम्पन्न होऊँ अर्थात् भोग और मोक्ष दोनों दो। इतना कहकर वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जब इस प्रकार राजा ने कहा तब देवीने उसके शीश पर आशीर्वाद दिया कि हे राजन्! ऐसा ही होगा। तेरी आयु बड़ी होगी; तेरा शत्रु भी कोई न होगा; निष्कपटक राज्य करेगा; आपदा तुझको न होगी; लक्ष्मी संपदा से सम्पन्न होगा; तेरी मजा भी बहुत सुखी रहकर तुझको देखके प्रसन्न होगी; तेरी प्रजा में आपदा किसी को न होगी और तू आत्मानन्द से पूर्ण होगा।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे उत्पत्तिप्रकरणे जीवजीवन्वर्णनन्नाम
कचत्वारिंशत्तमस्सर्गः॥४१॥

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! इस प्रकार कहके देवी अन्तर्धान हो गई और प्रातःकाल का समय हुआ; सब लोग जाग उठे; सूर्य भी उदय हुआ और सूर्यमुखी कमल खिल आये। राजा दोनों लीला को कण्ठ लगा प्रसन्न और आश्चर्यमान हुआ, मन्दिर में नगारे बजने लगे और नाना शब्द होने लगे, मन्दिर में बड़ा हुवास और आनन्द हुआ अनेक मङ्गना नृत्य करने लगी और उत्साह हुआ। विद्याधर, सिद्ध, देवता, फूलों की वर्षा करने लगे और लोग बड़े आश्चर्यमान हुए कि लीला परलोक से फिर आई है और अपने और एक आप-सी दूसरी लीला ले आई है। हे रामजी! यह कथा देश से देशान्तर चली गई और सब लोग सुनके आश्चर्यमान हुए। जब इस प्रकार यह कथा प्रसिद्ध हुई तब राजा ने भी सुना कि मैं मर के फिर जिया हूँ और विचारा कि फिर मेरा अभिषेक हो। निदान मन्त्री और मण्डलेश्वरों ने उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों ओर से सब समुद्र और सर्व तीर्थों का जल मँगा राजा को राज का अभिषेक किया और चारों समुदों पर्यन्त राजा निष्कण्टक राज्य करने लगा। राजा और लीला यह पूर्व की कथा को विचारते और आश्चर्यमान होते थे। सरस्वती के उपदेश और प्रसाद से अपना पुरुषार्थ पाके राजा और दोनों लीला ने इस भाँति