पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/२९

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वैराग्य प्रकरण।

हुआ है। हम तुम्हारे पुत्र को परम पद प्राप्त करावेंगे और अभी उनके सब दुःख मिट जावेंगे। हम और वशिष्ठादि एक युक्ति से उपदेश करेंगे उससे उनको आत्मपद की प्राप्ति होगी। तब वह दशा तुम्हारे पुत्र की होगी कि वह लोष्ट, पत्थर और सुवर्ण को समान जानेंगे। जो क्षत्रियों का प्राकृतिक आचार है सो वह करेंगे और हृदय से उदासीन रहेंगे इससे तुम्हारा कुल कृतार्थ होगा। तुम रामजी को शीघ्र बुलावो। इतना कहकर वाल्मीकिजी बोले, हे भारदाज! ऐसे मुनीन्द्र के वचन सुनकर राजा दशरथ ने मन्त्री और नौकरों से कहा कि राम, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को साथ ले आवो। जब मन्त्री और मृत्योंने रामजी के पास जाकर कहा तो रामजी पाये और राजा दशरथ, वशिष्ठजी और विश्वामित्र को देखा कि तीनों पर चमर हो रहे हैं और बड़े बड़े मण्डलेश्वर बैठे हैं। सबने रामजी को देखा कि उनका शरीर कश हो रहा है। जैसे महादेवजी स्वामिकार्तिक को आते देखें वैसे ही राजा दशरथ ने रामजी को आते देखा। रामजी ने वहाँ भाकर राजा दशरथजी के चरण पर मस्तक लगा प्रणाम किया और वैसे ही वशिष्ठजी, विश्वामित्र भोर सभा में जो बड़े बड़े ब्राह्मण बैठे थे उनको भी प्रणाम किया। जो बड़े बड़े मण्डलेश्वर बैठे थे उन्होंने उठकर रामजी को प्रणाम किया। राजा दशरथने रामजी को गोद में बैठाकर मस्तक चूमा और बहुत प्रेम से पुलकित हो रामजी से कहा हे पुत्र! केवल विरकता से परमपद की प्राप्ति नहीं होती। गुरु वशिष्ठजी के उपदेश की युक्ति से परमपद की प्राप्ति होगी। वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! तुम धन्य हो और बड़े शूर हो कि विषयरूपी शत्रु तुमने जीते हैं। विश्वामित्रजी बोले, हे कमलनयन राम! अपने अन्तःकरण की चपलता को त्यागकर जो कुब तुम्हारा आशय हो प्रकट कर कहो कि तुमको मोह कैसे हुआ, किस कारण हुआ और कितना है? एवं अब जो कुछ तुमको वाञ्छित हो सो भी कहो। हम तुमको उसी पद में प्राप्त करेंगे जिसमें कदाचित् दुःख न हो। जैसे आकाश को चूहा नहीं काट सकता वैसे ही तुमको कदाचित् पीड़ा न होगी। हे रामजी! हम तुम्हारे सम्पूर्ण दुःख नाश कर देंगे। तुम संशय मत करो जो कुछ तुम्हारा वृत्तान्त