पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/३९१

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उत्पत्ति प्रकरण।

उनकी उत्पति तीन प्रकार की है—एक सात्त्विकी दूसरी राजसी भोर तीसरी तामसी। प्रथम शुद्ध चिन्मात्र ब्रह्म में जो कलना उठी है उसी बाह्यमुखी फुरने का नाम मन हुआ है वही ब्रह्मारूप है, उस ब्रह्मा ने जैसा संकल्प किया तैसा ही आगे देखा, उसने यह भुवन आडम्बर और उसमें जन्म, मरण और सुख, मोह आदिक संसरना कल्पा। इसी प्रकार अपने आरम्भ संयुक्त, जैसे वरफ का कणुका समुद्र से उपजकर सूर्य के तेज से लीन हो जावे तैसे ही आरम्भ से निर्वाण हो गया, संकल्प के वश से फिर उपजा और फिर लीन हो गया। इसी प्रकार कई अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड ब्रह्मा से उपज उपजकर लीन हो गये हैं और कितने होंगे और कितने वर्तमान हैं। अब जैसे मुक्त होते हैं सो सुनो! हे रामजी! शुद्ध ब्रह्मतत्व से प्रथम मनसत्ता उपजी, उसने जब आकाश को चेता तब आकाश हुआ, उसके उपरान्त पवन हुआ, फिर अग्नि और जल हुआ और उसकी दृढ़ता से पृथ्वी हुई। तब चित्तशक्ति दृढ़ संकल्प से पाँच भूतों को प्राप्त हुई और अन्तःकरण जो सूक्ष्म प्रकृति है सो पृथ्वी, तेज और वायु से मिलकर धान्य में प्राप्त हुआ। उसको जब पुरुष भोजन करते हैं तब वह परिणाम होकर वीर्य और रुधिररूप होके गर्भ में निवास करता है, जिससे मनुष्य उपजता है। पुरुष जन्ममात्र से वेद पढ़ने लगता है, फिर गुरु के निकट जाता और कम से उसकी बुद्धि विवेक द्वारा चमत्कारवान हो जाती है तब उसको ग्रहण और त्याग और शुभ अशुभ में विचार उपजता है। और निर्मल अन्तःकरण सहित स्थित होता है और क्रम से सप्तभूमिका चन्द्रमा की नाई उसके चित्त में प्रकाशती हैं।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे उत्पत्तिप्रकरणे सात्त्विकजन्मावतारोनाम
एकनवतितमस्सर्गः॥९१॥

रामजी बोले, हे सर्वशात्रों के वेत्ता, भगवन्! ज्ञान की वे सप्तभूमिका कैसे निवास करनेवाली हैं संक्षेप में मुझसे कहिये? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! अज्ञान की सप्तभूमिका हैं और ज्ञान की सप्तभूमिका हैं और उनके अन्तर्गत और बहुत अवस्था हैं कि उनकी कुछ संख्या नहीं परन्तु