पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/४१७

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स्थिति प्रकरण।

प्रार्थना की कि हे देव! मुझको पूर्व के भर्ता की प्राप्ति हो। इस प्रकारवह नित्य पूजन करे और वर माँगे। निदान वहाँ वह यौवनवान हुमा यहाँ यह यौवनवती हुई। तब राजा ने यज्ञ को आरम्भ किया और उसमें सब राजा और ब्राह्मण पाये। दशारण्य बाह्मण भी पुत्रसहित वहाँ आया तब उस पूर्वजन्म के भर्ता को देखकर स्नेह से राजपुत्री के नेत्रों से जल चलने लगा और उसके कण्ठ में फूल की माला डालके उसे अपना भर्ता किया। राजा यह देखके आश्चर्यमान हुआ और निश्चय किया कि भला हुआ। फिर क्रम से विवाह किया मोर पुत्री भोरजामातृ को राज्य देके आप वन में तप करने के लिए चला गया। यहाँ ये पुरुष और स्त्री मालवदेश का राज्य करने लगे और चिरकाल तक राज्य करते रहे। निदान दोनों वृद्ध हुए और उनका शरीर जर्जरीभूत हो गया। तब उसको वैराग्य हुमा कि स्त्री महादुःखरूप है पर उसे सामान्य वैराग्य हुआ था इससे जर्जरीभूत अङ्ग में सेवने से तो अशक्क हुआ परन्तु तृष्णा निवृत्त न हुई। निदान मृतक हुआ और बान्धवों ने जला दिया तब ज्ञान की प्राप्ति विना महाअन्धकूप मोह में जा पड़े। हे रामजी! मृत्यु-मूा के अनन्तर उसको परलोक भासि पाया और वहाँ कर्म के अनुसार सुख दुःख भोग के अङ्ग वङ्ग देश में धीवर हुमा और अपने धीवरकर्म करता रहा। फिर जब वृद्ध अवस्था आई तव शरीर में वैराग्य हुमा कि यह संसार महादुःखरूप है। ऐसे जानके सूर्य भगवान का तप करने लगा और जब मृतक हुमा तब तप के वश से सूर्यवंश में राजा होकर भावना के वश से कुछ ज्ञानवान् हुमा। इस जन्म में वह योग करने और वेद पढ़ने लगा और योग की भावना से जब शरीर छूटा तब बड़ा गुरू हुआ और सबको उपदेश करने लगा, मन्त्र सिद्ध किया और वेद में बहुत परिपक्व हुभा। मन्त्र के वश से वह विद्याधर हुआ और एक कल्प पर्यन्त विद्याधररहा। जबकल्पका मन्त हुआ तब शरीर अन्तर्धान हो गया और पवनरूपी शरीर वासना सहित हो रहा। जब ब्रह्मा की रात्रि क्षय हुई, दिन हुभा और ब्रह्मा ने सृष्टि रची तब वह एक मुनीश्वर के गृह में पुत्र हुआ और वहाँ उसने बड़ा तप किया। वह सुमेरु पर्वत पर जाकर स्थित हुभा और एक मन्वन्तर पर्यन्त वहाँ