पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/४६१

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स्थिति प्रकरण।

घटा पूर्ण हो जाती है तैसे ही देवता और दैत्यों की सेना इकट्ठी हो गई और दिशा विदिशा सब स्थान पूर्ण हो गये।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे स्थितिप्रकरणे दामव्यालकटकसंग्रामवर्णनन्नाम षडूविंशतितमस्सर्गः॥२६॥

वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! इस प्रकार घोर संग्राम हुआ कि देवता और दैत्यों के शरीर ऐसे गिरे जैसे पंख टूटे से पर्वत गिरते हैं। रुधिर के प्रवाह चलते थे और बड़े शब्द होते थे जिससे आकाश और पृथ्वी पूर्ण हो गई। दाम ने देवताओं के समूहों को घेर लिया और व्याल ने पकड़ के पहाड़ में पीस डाला। कट ने देवताओं के समूह चूर्ण किये उनके स्थान तोड़ डाले और बड़ा क्रूर संग्राम किया। देवताओं का हाथी जो मद से मस्त था वह ताड़ने से क्षीण हो गया तो वहाँ से भयभीत होकर भागा और देवता भी भागे। जैसे मध्याह्न के सूर्य का बड़ा प्रकाश होता है तैसे ही दैत्य प्रकाशवान् हुए और जैसे बाँध के टूटने से जल का प्रवाह तीक्ष्ण वेग से चलता है तैसे ही देवता तीक्ष्ण वेग से भागे। जल के प्रवाहवत् मर्यादा छूट गई और दाम, व्याल, कट की सेना जीत गई। तब तो वे देवताओं के पीछे लग के मारते जावें। निदान जैसे काष्ठ से रहित अग्नि अन्तर्धान हो जाती है तैसे ही बलवान् देवता बल से हीन होकर अन्तर्धान हो गये और दैत्य उनको ढूँढ़ते फिरें, परन्तु जैसे जाल से निकले पक्षी और बन्धन से छूटे मृग हाथ नहीं आते तैसे ही देवता भी हाथ न आये तब दाम, व्याल कट तीनों सेना सहित पाताल में अपने स्वामी सम्बर के पास उसकी प्रसन्नता के लिये आये। जब देवताओं ने सुना कि दैत्य पाताल में गये हैं तब वे विचार करने लगे कि किसी प्रकार इससे ईश्वर हमारी रक्षा करे। ऐसी चिन्ता से आतुर हुए देवताओं को देख ब्रह्माजी जिनका अमित तेज है और सुन्दर रक्त वस्त्र पहिने हैं देवताों के निकट आये और जैसे संध्याकाल में रक्त वर्ण बादल में चन्द्रमा शोभता है तैसे ही प्रकाशवान ब्रह्माजी को देख के इन्द्रादिक देवताओं ने प्रणाम किया और सम्बर दैत्य की शत्रुता से कहा कि हे त्रिलोकी के ईश्वर! हम आपकी शरण आये हैं, हमारी रक्षा करो।