पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/४६२

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योगवाशिष्ठ।

सम्बर दैत्य ने हमको बहुत दुःख दिया है और उसके सेनापति दाम, व्याल, कट जो बड़े दैत्य हैं किसी प्रकार हमसे नहीं मारे जाते। उन्होंने हमारी सेना बहुत चूर्ण की है इस निमित्त आप इनके मारने का उपाय हमसे कहिये। तब संपूर्ण जगत् पर दया करनेवाले ब्रह्माजी ने शान्ति के कारण वचन कहे। हे अमरेश! ये देत्य अभी तो नष्ट न होंगे, जब इनको अहंकार उपजेगा तब ये मरेंगे और तुमही इनको जीतोगे। मैंने इनकी भविष्यत् देखी है, ये दैत्य युद्ध में भागना नहीं जानते और मरने, मारने का ज्ञान भी इनको नहीं है ये सम्बर देत्य की माया से रचे हैं इसका नाश कैसे हो। जिसको 'अहं' 'मम' का अभिमान हो उसी का नाश भी होता है, पर ये तो 'अहं' 'ममादिक' शत्रुओं को जानते ही नहीं इनका नाश कदाचित् न होगा। जब इनको अहंकार उपजेगा तब इनका नाश होगा इसलिये अहंकार उपजाने का उपाय मैं तुमसे कहता हूँ। तुम उनके साथ युद्ध करते रहो और इस प्रकार युद्ध करो कि कभी उनके सम्मुख रहो, कभी दाहिने रहो, कभी बाँये रहो और कभी भाग जावो। इस प्रकार जब तुम बारम्बार करोगे तब उनके युद्ध के अभ्यासवश से अहंकार का अंकुर उपजेगा और जब अहंकार का चमत्कार हृदय में उपजा तब उसका प्रतिविम्ब भी देखेंगे जिससे यह वासना भी फुर आवेगी कि हम यह हैं, हमको यह कर्तव्य है, यह ग्रहण करने योग्य है और यह त्यागने योग्य है। तब वे आपको दाम, व्याल, कट जानेंगे और तुम उनको वश कर लोगे और तुम्हारी जय होगी। जैसे जाल में फँसा हुआ पक्षी वश होता है तैसे ही वे भी अहंकार करके वश होंगे अभी वश नहीं होते। वे तो सुख दुःख से रहित बड़े धैर्यवान् हैं अभी उनका जीतना कठिन है। हे साधो! जो पुरुष वासना की ताँत से बँधे हुए हैं और पेट के कार्यों के वश हैं वे इस लोक में वश हो जाते हैं और जो बुद्धिमान पुरुष निर्वासनिक हैं और जिनकी सर्वत्र असंसक्त बुद्धि है जो किसी में बन्धवान् नहीं होते और इष्ट अनिष्ट में समभाव रहते हैं वे किसी से जीते नहीं जाते। जिनके हृदय में वासना है वे इसी रस्सी से बँधे हुए हैं। जिनको देह में अभिमान है वे चाहे सर्वशास्त्रों के वेत्ता भी हों तो