पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/४७१

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स्थिति प्रकरण।

नाम है तैसे ही ब्रह्म और जगत् एक ही वस्तु के पर्याय हैं। जैसे आकाश में तरवरे भासते हैं और हैं नहीं, केवल आकाश ही है, तैसे ही अज्ञानी को ब्रह्म में जो जगत् भासते हैं वे हैं नहीं, ब्रह्म ही है। जैसे नेत्र में तिमिर रोगवाले को जो तस्वरे भासते हैं वे तवरे नेत्ररोग से भिन्न नहीं तैसे ही अज्ञानी को अपना आप चिदाकाश ही अन्यरूप हो भासता है वह चिदाकाश सर्व और व्यापकरूप है और उससे भिन्न जगत् असत् है। सत्यरूप, एक, विस्तृत आकार, महाशिलावत्, घनस्वच्छ, निःस्पन्द, उदय-अस्त से रहित वही सत्ता है, इसलिये सर्वकलना को त्यागकर उसी अपने आप में स्थित हो।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे स्थितिप्रकरणे निर्वाणोपदेशो नाम एकत्रिंशत्तमस्सर्गः॥३१॥

रामजी ने पूछा, हे भगवन्! असत् सत् की नाई होके जो स्थित हुआ है वह बालक को अपनी परछाहीं में वैतालवत् भासता है सो जैसे हुआ तैसे हुआ, आप यह कहिये कि दाम, व्याल, कट के दुःख का अन्त कैसे होगा? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जब उनको यमराज ने अग्नि में भस्म कराया तब यमराज से किंकरो ने पूछा कि हे प्रभो! इनका उद्धार कब होगा? तब यमराज ने कहा, हे किंकरो! अब ये तीनों आपस में विछुर जावेंगे और अपनी सम्पूर्ण कथा सुनेंगे तब निःसंदेह होके मुक्त होंगे, यही नीति है। रामजी ने फिर पूछा, हे भगवन्! वह वृत्तान्त कहाँ सुनेंगे, कब सुनेंगे और कौन निरूपण करेगा? वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! काश्मीर देश में कमलों से पूर्ण एक बढ़ा ताल है और उसके निकट एक छोटा ताल है उसमें वे चिरपर्यन्त बारम्बार मच्छ होंगे और मच्छ का शरीर त्याग करके सारस पक्षी होके कमलों के ताल पर रहकर कमल, कमलिनी और उत्पलादिक फूलों में विचरेंगे और सुगन्ध को लेते चिरकाल व्यतीत करेंगे। देवसंयोग से उनके पाप नष्ट होंगे और बुद्धि निर्मल हो भावेगी तब तीनों आपमें विछुर जावेंगे और युक्ति से मुक्ति पावेंगे। जैसे राजस, तामस, सात्विक गुण आपस में स्वेच्छित विकर जाते हैं तैसे ही वे भी स्वेच्छित बिछुर जावेंगे। काश्मीर देश में एक पहाड़